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एस धम्मो सनंतनो तुमने कसमें खायीं कि अब कभी नहीं सोऊंगा, अब कभी भूल नहीं करूंगा, अब मुझे क्षमा कर दो। तब से वर्षों बीत गए हैं, तब से तुम सोए नहीं, तब से तुम नमाज ही नहीं चूके। अब मैंने देखा कि आज तुम फिर सो गए हो, अगर मैं तुम्हें न जगाऊं तो और कठिनाई होगी, तुम इससे भी कुछ पाठ लोगे। तो मैंने सोचा एक दफे नमाज पढ़ लो, वही ज्यादा ठीक है। उसमें मेरी कम हानि है। क्योंकि पिछली दफे तुम चूके, उससे तुम्हें जितना लाभ हुआ, उतना तुमने जितनी नमाजें जिंदगीभर की थीं उनसे भी न हुआ था।
इस फर्क को समझना।
तुम जिंदगीभर नमाज पढ़ते रहे, रोज सुबह-सांझ पांच बार, उससे तुम्हें इतना लाभ नहीं हुआ था, जितना पिछली बार सो गए थे और जब जागे थे तो जिस ढंग से तुम पछताए थे, जिस ढंग से तुम पीड़ित हुए थे, जैसे तुम रोए थे, जैसे तुम जार-जार होकर तड़फे थे, तुम फर्श पर घिसटे थे, तुमने सिर पटका था, तुमने प्रभु को ऐसा याद किया था, उस दिन तुम्हारी नमाज, उस दिन तुम्हारी प्रार्थना परमात्मा तक पहुंच गयी थी! और तब से वर्षों बीत गए, मैंने तुम्हें बहुत सुलाने की कोशिश की, सब किया, लेकिन तुम कभी नहीं सोए, तुम हर हालत में भी नमाज पढ़ते रहे। आज तुम सो गए थके-मांदे, मैं डरा कि कहीं आज फिर तुम सोए रहे, तब तो तुम पता नहीं कितना लाभ ले लोगे उस प्रायश्चित्त से, उस पश्चात्ताप से! __ पश्चात्ताप पश्चात्ताप का फर्क है। सिर्फ रोने की ही बात नहीं है, सीखने की बात है। सीखो तो बड़ा लाभ है; जो भूलें तुमने की हैं, वे सभी भूलें काम की हो जाती हैं। सभी भूलें सोने की, अगर सीख लो। अगर न सीखो, तो तुमने जो ठीक भी किया वह भी मिट्टी हो जाता है। __इस गणित को खयाल में लेना। भूल भी सोना हो जाती है, अगर उससे सीख
लो। और गैर-भूल भी मिट्टी हो जाती है, अगर कुछ न सीखो। अनुभव तो जिंदगी में सभी को होते हैं, थोड़े से लोग उनसे सीखते हैं। जो सीखते हैं, वे ज्ञानी हो जाते हैं। अधिक लोग उनसे सीखते नहीं। अनुभव तो सभी को बराबर होते हैं, अच्छे के, बुरे के, लेकिन कुछ लोग अनुभवों की राशि लगाकर बैठे रहते हैं, उसकी माला नहीं बनाते। थोड़े से लोग हैं जो अनुभव के फूलों को सीख के धागे से पिरोते हैं और माला बना लेते हैं। वे प्रभु के गले में हार बन जाते हैं।
पाठ खयाल में रखो-जो हुआ, हुआ। वह अन्यथा हो नहीं सकता। लेकिन उसके होने के कारण तुम अन्यथा हो सकते हो। खयाल लेना, गलत पश्चात्ताप उसे कहता हूं मैं जब तुम सोचते हो-जो मैंने किया वैसा न किया होता, अन्यथा हो जाता, कुछ तरकीब हो जाती, ऐसा हो जाता, वैसा हो जाता, क्यों मैंने ऐसा किया, किसी से पूछ लेता, जरा सी बात थी, क्यों चूक गया; इस तरह के पछतावे से कोई लाभ नहीं, क्योंकि तुम अतीत को बदलना चाह रहे हो, तो पश्चात्ताप व्यर्थ।
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