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एस धम्मो सनंतनो
लो। तुम खुद ही प्रसन्न नहीं हो तो कोई और कैसे प्रसन्न होगा?
तुम यहां होकर अगर प्रसन्न हो, तो ही कोई दूसरा तुम्हारे होने से प्रसन्न हो सकता है। प्रसन्नता तुम्हारे भीतर से प्रगट होती है। तुम अगर आनंदित हो, तो ही इस आश्रम के वासी तुम्हारे होने से आनंदित होंगे। अगर तुम दुखी हो और परेशान हो और यहां तुम्हें भला नहीं लगता, तो तुम्हारे कारण यहां कोई प्रसन्न नहीं है। तुम्हारी बड़ी कृपा होगी तुम चली जाओ तो! कोई तुमसे कह भी नहीं सकता है कि तुम चली जाओ, कोई तुमसे कह भी नहीं रहा है। लेकिन अगर तुम्हारे मन में यह बार-बार बात उठती है, तो तुम कृपा करो! तुम कोई युगांडा की प्रेसीडेंट तो हो नहीं—इदी अमीन तो हो नहीं कि पूरा इंग्लैंड कह रहा है, कृपा करके आप न आएं, मगर वह सज्जन हैं कि जा ही रहे हैं। इंग्लैंड ने उनको खबर भेजी है कि कामनवेल्थ की सभा . में हम आपका स्वागत करने में असमर्थ हैं, मगर वह जा ही रहे हैं!
कोई तुमसे कहता नहीं कि तुम भाग जाओ, कोई तुम्हें रोक भी नहीं रहा है, खयाल रखना। कोई तुम्हारा हाथ पकड़कर रोक भी नहीं रहा है कि तुम यहां रहो। तुम्हारे जाने से हलकापन ही होगा। और तुम जो जगह भरे हो, वहां कोई दूसरा आदमी विकसित होने लगेगा। तुम तो विकसित होती मालूम नहीं होती, तुम्हारा होना न होना बराबर है। मैं नहीं कह रहा हूं कि चली जाओ, मैं इतना ही कह रहा हूं कि अगर तुम्हारे मन में यह भागने का भाव बार-बार उठता है, तो इस भाव को सुनो, इसका अनुकरण करो। यह तुम्हारे ही अंतरात्मा की आवाज है। कौन जाने यही अंतरात्मा की आवाज तुम्हें ठीक रास्ते पर ले जाए, तुम्हारा रास्ता कहीं और हो, तुम्हारा गुरु कहीं और हो! ___ रही मेरी बात, सो मुझे तुम अपने हृदय में रखना जहां भी रहो, और जहां भी रहो छोटी-मोटी या बड़ी, जैसी निंदा बने करते रहना। मुझे तुम माफ न कर सकोगी, यह मुझे मालूम है। इसलिए जहां रहो वहीं, जो काम यहां करती हो वहां करना। इसमें अड़चन क्या है? मेरे पास रहकर कर ही क्या रही हो यहां? छोटी-मोटी निंदा करती हो—कहती हो—मैं कहता हूं, बड़ी भी करो। पूना रहीं कि पटना, पटना में चलाना यही काम। तो मेरे से तो संग-साथ बना ही रहेगा, आश्रम तुमसे मुक्त हो जाएगा, तुम आश्रम से मुक्त हो जाओगी।
खयाल रखो, आश्रम में जो व्यवस्था है, वह मेरे निर्देश से है। जिनका मुझसे लगाव है, वे उस व्यवस्था को स्वीकार करेंगे। जो इस व्यवस्था को अस्वीकार करते हैं, उनका मुझसे लगाव नहीं है। क्योंकि वह व्यवस्था मेरी है। यहां किसी और की व्यवस्था नहीं है। यह कोई लोकतंत्र नहीं है यहां, यह तो बिलकुल तानाशाही है। यहां कोई लोग तय नहीं कर रहे हैं कि क्या हो, यहां जो मैं तय कर रहा हूं वही हो रहा है, वैसा ही हो रहा है, रत्ती-रत्ती वैसा हो रहा है।
इसलिए जिनका मुझसे लगाव है, वे बेईमानियां न करें। वे इस तरह की बेईमानी
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