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एस धम्मो सनंतनो
नहीं है लेकिन कृष्णप्रिया के ढंग देखकर कभी-कभी मुझे भी लगने लगता है कि यह पूंछ सीधी होगी? यह भी मुझे खयाल आता है कि कृष्णप्रिया यह पूंछ तिरछी रहे, इसमें मजा भी ले रही है। इससे विशिष्ट हो जाती है। इससे लगता है-कुछ खास है, औरों जैसी नहीं है। खास होने के लिए कोई और अच्छा ढंग चुनो। यह भी कोई खास होने का ढंग है!
राबर्ट रिप्ले ने बहुत सी घटनाएं इकट्ठी की हैं सारी दुनिया से। उसकी बड़ी प्रसिद्ध किताबों की सीरीज है : बिलीव इट आर नाट, मानो या न मानो। उसने सब ऐसी बातें इकट्ठी की हैं जिनको कि तुम पहली दफा सुनकर कहोगे, मानने योग्य नहीं। मगर मानना पड़ेगी, क्योंकि वह तथ्य है। उसने एक आदमी का उल्लेख किया है जो सारे अमरीका में अपनी छाती के सामने एक आईना रखकर उलटा चला। कारण! बड़ी मेहनत का काम था उलटा चलना। पूरा अमरीका उलटा चला। कारण जब पूछा गया तो उसने कहा कि मैं प्रसिद्ध होना चाहता हूं। वह प्रसिद्ध हो भी गया।
एक आदमी प्रसिद्ध होना चाहता था, तो उसने अपने आधे बाल काट डाले, एक तरफ के बाल काट डाले, आधी खोपड़ी साफ कर ली और घूम गया न्यूयार्क में। तीन दिन घूमता रहा, अखबारों में खबरें छप गयीं, टेलीविजन पर आ गया, पत्रकार उसके पीछे आने लगे कि भई, यह बात क्या है? और वह चुप्पी रखता था। तीन दिन बाद वह बोला कि मुझे प्रसिद्ध होना था।
मगर ऐसे अगर प्रसिद्ध भी हो गए तो सार क्या? यह कोई बड़ी सृजनात्मक बात तो न हुई!
ऐसा लगता है कि कृष्णप्रिया सोचती है कि इस तरह की बातें करने से कुछ विशिष्ट हुई जा रही है। यहां विशिष्ट होने के हजार उपाय तुम्हें दे रहा हूं-ध्यान से विशिष्ट हो जाओ, प्रेम से विशिष्ट हो जाओ, प्रार्थना से विशिष्ट हो जाओ। कुछ सृजनात्मक करो, विशिष्टता ही का कोई मूल्य नहीं होता। नहीं तो मूढ़ता से भी आदमी विशिष्ट हो जाता है।
जाओ, रास्ते पर जाकर शीर्षासन लगाकर खड़े हो जाओ, विशिष्ट हो गए। पूना हेराल्ड का पत्रकार पहुंच जाएगा, फोटो ले लेगा। नंगे घूमने लगो, प्रसिद्ध हो जाओगे। मगर उससे तुम्हारी आत्मा को क्या लाभ होगा? कहां तुम्हारा विकास होगा? कई बार ऐसा हो जाता है कि हम गलत उपाय चुन लेते हैं विशिष्ट होने के, रुग्ण उपाय चुन लेते हैं। कृष्णप्रिया ने रुग्ण उपाय चुने हुए हैं।
वैसे मैं यह नहीं कहता कि अगर इसमें ही तुम्हें आनंद आ रहा हो तो बदलो। मैं किसी के आनंद में दखल देता ही नहीं। अगर इसमें ही आनंद आ रहा है, तुम्हारी मर्जी! मेरे आशीर्वाद। इसको ऐसा ही जारी रखो।
तुम कहती हो कि 'मैं छोटी-मोटी निंदा आपकी कर बैठती हूं।' फिर छोटी-मोटी क्या करनी! फिर ठीक से ही करो। जब मजा ही लेना हो, तो
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