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________________ एस धम्मो सनंतनो कहता हूं-संन्यास, संन्यास, संन्यास; तुम मुझे सुनते हो कि सोते हो? ___ मैंने सुना है, एक देश में संत-विरोधी हवा चल रही थी। हवा तो हवा है। कभी इंदिरा के पक्ष में चलती है, कभी जनता के पक्ष में चलती है। हवा का कोई भरोसा तो है नहीं। किसके पक्ष में चलने लगे, किसके विपक्ष में। उस देश में संतों के खिलाफ चल रही थी। एक पहुंचा हुआ सूफी फकीर पकड़ लिया गया। सरकार उसकी सब तरफ से जांच-पड़ताल कर रही थी। वह पहुंचा हुआ आदमी था, उसकी बातें भी सरकारी अफसरों की समझ में नहीं आती थीं। वैसे ही अफसरों के पास दिमाग ही अगर हो तो अफसर ही क्यों होते! लाख दुनिया में और काम थे, फाइलों से सिर मारते! उनकी कुछ समझ में नहीं आता था तो उन्होंने एक बड़े मनोवैज्ञानिक को बुलाया कि शायद यह समझ ले। मनोवैज्ञानिक ने कुछ प्रश्न पूछे। पहला ही प्रश्न उसने पूछा कि महाशय, क्या आप अपनी नींद में बात करते हैं? उस फकीर ने कहा कि अपनी नींद में नहीं, दूसरों की नींद में जरूर। __ आपके संबंध में ऐसा लगता है कि यही हालत मेरी है। तुम्हारी नींद में मैं बात करता हूं, ऐसा लगता है। तुम रोज सुनते हो; सुबह सुनते, सांझ सुनते, अहर्निश एक ही रटन है कि अब जागो, अब तुम पूछ रहे हो कि अब जैसी आपकी आज्ञा! यह तो ऐसे ही हुआ, पुरानी कहावत है कि रातभर राम की कथा सुनी और सुबह पूछा कि सीता राम की कौन थी? यहां तो सारा स्वाद ही संन्यास का है। ऐसे ही बहुत देर हो गयी, अब और देर न करो। दूसरा प्रश्नः संत सदा से परिग्रह के विरोध में रहे हैं। लेकिन परिग्रह के बिना तो चलता नहीं। फिर सत्य का खोजी कितना परिग्रह रखे? संत परिग्रह के विरोध में रहे हैं, ऐसी बात सच नहीं है। परिग्रह भाव के विरोध । में जरूर रहे हैं। कुछ न कुछ तो संत को भी रखना पड़ता है—भिक्षापात्र ही सही, लंगोटी ही सही। कुछ न कुछ जीवन में जरूरी है। फिर कितना, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। क्योंकि आदमी का मन ऐसा है कि चाहे तो लंगोटी से इतना राग बना ले सकता है कि वही नर्क ले जाने के लिए पर्याप्त हो जाए। एक कौड़ी से भी तुम अपना राग ऐसा लगा सकते हो कि दूसरे को कोहिनूर से भी न हो। दूसरा आदमी कोहिनूर को ऐसे छोड़ दे जैसे मिट्टी था और तुम कौड़ी को ऐसे पकड़े रखो जैसे कि तुम्हारा प्राण था। 284
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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