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________________ ध्यान का दीप, करुणा का प्रकाश बुद्ध का व्यक्तित्व ही प्रेम है। बुद्ध ने कहा है, ध्यान की परिसमाप्ति करुणा में है। ध्यान जब परिपूर्ण हो जाता है, तो करुणा की ज्योति फैलती है। ध्यान का दीया और करुणा का प्रकाश। ध्यान की कसौटी कहा है कि जब करुणा फैले, प्रेम फैले। ये छोटे-छोटे बच्चे प्यासे होकर आ गए हैं, इन्हें पानी पिलाया, इन्हें और कुछ भी पिलाया- इन्हें बुद्धत्व पिलाया। बुद्धों के पास जाओ तो बुद्धत्व के अलावा और उनके पास देने को कुछ है भी नहीं। छोटी-मोटी चीजें उनके पास देने को हैं भी नहीं, बड़ी से बड़ी चीज ही बस उनके पास देने को है। वही दे सकते हैं जो वे हैं। प्रेम भी पिलाया। ऊपर की प्यास तो मिटायी और भीतर की प्यास जगायी। जीसस के जीवन में एक ऐसा ही उल्लेख है। जीसस जा रहे हैं अपने गांव, राजधानी से लौट रहे हैं। बीच में एक कुएं पर ठहरे हैं, उन्हें प्यास लगी है। कुएं पर पानी भरती स्त्री से उन्होंने कहा, मुझे पानी पिला दे, मैं प्यासा हूं। उस स्त्री ने उन्हें देखा, उसने कहा, लेकिन आप खयाल रखें, मैं हीन जाति की हूं; आप मेरे हाथ का पानी पिएंगे? जीसस ने कहा, कौन हीन, कौन श्रेष्ठ! तू मुझे पिला, मैं तुझे पिलाऊंगा। उस स्त्री ने कहा, मैं समझी नहीं आप क्या कहते हैं? आप यह क्या कहते हैं कि तू मुझे पिला, मैं तुझे पिलाऊंगा? जीसस ने कहा, हां, तू जो पानी पिलाती है, उससे तो थोड़ी देर को प्यास बुझेगी, मैं तुझे जो पानी पिलाऊंगा उससे सदा-सदा के लिए प्यास बुझ जाती है। बुद्ध या जीसस तुम्हारे भीतर एक नयी प्यास को जगाते हैं। फिर उस नयी प्यास को बुझाने का उपाय भी बताते हैं। नयी प्यास है-कैसे हम उस जीवन को जानें जो शाश्वत हो? कैसे हम इस क्षणभंगुर से मुक्त हों? कैसे इस समय में बंधे हुए से हमारा छुटकारा हो? कैसे हम क्षुद्र के पार हों और विराट में हमारे पंख खुलें? तो पहले तो प्यास जगाते हैं। प्यास जगे तो यात्रा शुरू होती है। प्यास हो तो पानी की तलाश शुरू होती है। और एक बार पानी की तलाश शुरू हो जाए, तो पानी सदा से है। और बहुत ही करीब है, सरोवर भरा है। तुममें प्यास ही नहीं थी इसलिए तुम सरोवर से चूकते रहे। तो बुद्ध ने ऊपर की प्यास तो मिटायी और भीतर की प्यास जगायी। वे बच्चे खेल इत्यादि भूलकर दिनभर भगवान के साथ ही रहे। छोटे बच्चे थे, सरल थे, जो उनके मां-बाप के लिए संभव नहीं था, वह उन्हें संभव था। वे पहचान गए। इस आदमी का जो स्वर था, उन्हें सुनायी पड़ा। शायद कोई उनसे पूछता तो वे कुछ जवाब भी न दे सकते-जवाब देने योग्य उम्र उनकी थी भी नहीं लेकिन गुपचुप बात समझ में पड़ गयी। ऐसा आदमी उन्होंने पहले देखा नहीं था। यह आदमी कुछ और ही किस्म का आदमी था। इन और ही किस्म के आदमियों को आदमियों से अलग करने के लिए तो हमने कभी उनको बुद्ध कहा, हा 265
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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