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________________ एस धम्मो सनंतनो तदज्जहं निग्गहेस्सामि योनिसो हथिप्पभिन्नं विय अंकुसग्गहो।।२६८।। गौतम बुद्ध का नाम ही संकीर्ण सांप्रदायिक चित्त के लोगों को भयाक्रांत कर देता था। उस नाम में ही विद्रोह था। वह नाम आमूल क्रांति का ही पर्यायवाची था। ऐसे भयभीत लोग स्वयं तो बुद्ध से दूर-दूर रहते ही थे, अपने बच्चों को भी दूर-दूर रखते थे। बच्चों के लिए, युवकों-युवतियों के लिए उनका भय स्वभावतः और भी ज्यादा था। ऐसे लोगों ने अपने बच्चों को कह रखा था कि वे कभी बुद्ध की हवा में भी न जाएं। उन्हें उन्होंने शपथें दिला रखी थीं कि वे कभी भी बुद्ध या बुद्ध के भिक्षुओं को प्रणाम न करेंगे। ___ एक दिन कुछ बच्चे जेतवन के बाहर खेल रहे थे। खेलते-खेलते उन्हें प्यास लगी। वे भूल गए अपने माता-पिताओं और धर्मगुरुओं को दिए वचन और जेतवन में पानी की तलाश में प्रवेश कर गए। संयोग की बात कि भगवान से ही उनका मिलना हो गया। भगवान ने उन्हें पानी पिलाया और बहुत कुछ और भी पिलाया—प्रेम भी पिलाया। ऊपर की प्यास तो मिटायी और भीतर की प्यास जगायी। वे बच्चे खेल इत्यादि भूलकर दिनभर भगवान के पास ही रहे। ऐसा प्रेम तो उन्होंने कभी न जाना था। न जाना था ऐसा चुंबकीय आकर्षण, न देखा था ऐसा सौंदर्य, न देखा था ऐसा प्रसाद, ऐसी शांति, ऐसा आनंद, ऐसा अपूर्व उत्सव; वे भगवान में ही डूब गए। वह अपूर्व रस, वह अलौकिक रंग उन सरल बच्चों के हृदयों को लग गया। वे फिर रोज ही आने लगे। वे भगवान के पास धीरे-धीरे ध्यान में भी बैठने लगे। उनकी सरल श्रद्धा देखते ही बनती थी। _ फिर उनके मां-बाप को खबर लगी। मां-बाप अति क्रुद्ध हुए। पर अब बहुत देर हो चुकी थी। बहुत उन्होंने सिर मारा, उनके पंडित-पुरोहितों ने बच्चों को समझाया, डांटा-डपटा, भय-लोभ, साम-दाम-दंड-भेद, सब का उन छोटे-छोटे बच्चों पर प्रयोग किया गया, पर जो छाप बुद्ध की पड़ गयी थी सो पड़ गयी थी। फिर तो ये मां-बाप बहुत रोए भी, पछताए भी। जैसे बुद्ध ने उनके बच्चों को बिगाड़ दिया हो, उनकी नाराजगी इतनी थी। और वे कहते फिरते थे कि इस भ्रष्ट गौतम ने हमारे भोले-भाले बच्चों को भी भ्रष्ट कर दिया है। . ___अंततः उनका पागलपन ऐसा बढ़ा कि उन्होंने उन बच्चों को भी त्याग देने की ठान ली। और एक दिन वे उन बच्चों को सौंप देने के लिए बुद्ध के पास गए। पर यह जाना उनके जीवन में भी ज्योति जला गया, क्योंकि वे भी बुद्ध के ही होकर 254
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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