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________________ सत्यमेव जयते इस सुंदरी परिव्राजिका को लोभ दिया होगा धन का, पद का, प्रतिष्ठा का, लोभ में आ गयी होगी। जो लोभ में आ जाए, वह संसारी है; चाहे वह संन्यासी ही क्यों न हो गया हो। परिव्राजिका थी, संन्यास ले लिया था, लेकिन संन्यास भी लोभ के कारण ही लिया होगा। फिर लोभ के कारण ही डोल गयी। वह षड्यंत्र में संलग्न हो गयी। नित्य संध्या जेतवन जाती, परिव्राजिकाओं के साथ समूह में रहकर प्रातः नगर में प्रवेश करती। और जब श्रावस्ती-वासी पूछते-और ये श्रावस्ती-वासी कोई और न होंगे, वही पंडित-पुरोहित! नहीं तो कौन किससे पूछता है। वे ही पूछते होंगे रास्तों पर खड़े हो-होकर-कहां से आ रही हो? तब वह कहती, रातभर श्रमण गौतम को रति में रमण कराकर जेतवन से आ रही हूं। ऐसे भगवान की बदनामी फैलने लगी। लेकिन भगवान चुप रहे सो चुप रहे। सत्य को इतना समादर शायद ही किसी ने दिया हो। फर्क समझना। महात्मा गांधी ने एक शब्द इस देश में प्रचलित करवा दियाः सत्याग्रह। कि सत्य का आग्रह करना चाहिए। यह कथा इसके बिलकुल विपरीत है। बुद्ध कहते हैं, सत्य का आग्रह भूलकर नहीं करना चाहिए। सत्य तो अनाग्रह से पैदा होता है। सत्य कहने से थोड़े ही होता है। असल में आग्रह सभी असत्य के होते हैं। जब हम किसी चीज को बहुत चेष्टा से सत्य सिद्ध करने की दिशा में संलग्न हो जाते हैं, तो हम इतना ही कहते हैं कि हमें डर है कि अगर हमने इसको बहुत प्रबल प्रमाण न जुटाए, तो यह कहीं बात हार न जाए। सत्य में तो कोई भय का कारण ही नहीं है। इसलिए सत्य का कोई आग्रह नहीं होता। सत्याग्रह से ज्यादा गलत शब्द कोई हो नहीं सकता! सत्य का कोई आग्रह होता ही नहीं। सत्य तो मौन है। सत्य तो इतना बलशाली है कि उसके लिए किसी सुरक्षा का कोई आयोजन करने की जरूरत नहीं है। तो बुद्ध चुप रहे सो चुप रहे। एक शब्द न कहते। यह भी न कहते कि झूठ बोलती है यह सुंदरी। यह भी न कहते कि यह भी खूब षड्यंत्र चल रहा है, कुछ भी न कहते। न सुंदरी के खिलाफ एक शब्द बोले। न सुंदरी को बुलाया, न सुंदरी को समझाया, न चेताया। सुंदरी को सुंदरी पर छोड़ दिया। इस अनूठी प्रक्रिया को समझना। महात्मा गांधी होते तो उपवास करते। वह कहते कि मैं मर जाऊंगा, आमरण अनशन करूंगा, अब सत्य की घोषणा करो। सुंदरी सत्य कहे, नहीं तो मैं आमरण अनशन करता हूं। बुद्ध ने एक शब्द भी नहीं कहा। आमरण अनशन की तो बात दूसरी, सुंदरी को बुलाया भी नहीं। सुंदरी को समझाया भी नहीं। सुंदरी से पूछा भी नहीं। इस अनूठी प्रक्रिया को समझना। यह सत्य का अनाग्रह है। सत्य पर इतना भरोसा है, सत्य पर ऐसी अटूट श्रद्धा है कि सत्य अगर है, तो जीतेगा ही। आज नहीं कल, देर-अबेर जीतेगा ही। कुछ कहने की जरूरत नहीं समझी। 207
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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