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मृत्यु की महामारी में खड़ा जीवन
है। अगर यह देखा होता तो भगवान को पहले बुला लाए होते कि हमें कुछ जीवन के सूत्र दे दें, कोई सोपान दें कि हम भी जान सकें, अमृत क्या है? लेकिन नहीं गए, क्योंकि महामारी फैली नहीं थी। ___ आदमी ने कुछ ऐसी व्यवस्था की है कि मौत दिखायी नहीं पड़ती। जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है वह दिखायी नहीं पड़ती। और जो व्यर्थ की बातें हैं, खूब दिखायी पड़ती है। तुम एक कार को खरीदते हो तो जितना सोचते हो, जितनी रात सोते नहीं. जितनी केटलाग देखते हो; तुम एक मकान खरीदते हो तो जितनी खोजबीन करते हो; तुम एक सिनेमागृह में जाते हो तो जितना विचार करते हो अखबार उठाकर कि कहां जाना, कौन सी फिल्म देखनी, तुम जीवन के संबंध में इतना भी नहीं सोचते! तुम यह भी नहीं देखते कि यह जीवन हाथ से बहा जा रहा है और मौत रोज पास आयी चली जा रही है। मौत द्वार पर खड़ी है, कब ले जाएगी कहा नहीं जा सकता। हमने इस तरह से झुठलाया है मौत को कि जिसका हिसाब नहीं!
मेरी एक किताब है-अनटिल यू डाय, जब तक तुम मरो नहीं। इंग्लैंड में एक प्रकाशक उसे छापना चाहता है-शैल्टन प्रेस। उनका पत्र मुझे मिला तो मैं चकित हुआ। उन्होंने लिखा, किताब अदभुत है, हम इसे छापना चाहते हैं इंग्लैंड में, लेकिन नाम हम यह नहीं रख सकते। अनटिल यू डाय, यह तो इसका शीर्षक देखकर ही लोग इसे खरीदेंगे नहीं। लोग मौत से इतना डरते हैं। ऐसी किताब कौन खरीदेगा जिसके ऊपर यह लिखा हो-अनटिल यू डाय! नाम यह हम नहीं रख सकते हैं, नाम हमें बदलना पड़ेगा, उन्होंने लिखा।
सूचक है बात, हम मौत की बात ही कहां करते हैं! कोई मर जाता है तो कहते हैं, देहावसान हो गया। छिपाते हैं। कोई मर गया तो कहते हैं, स्वर्गवासी हो गए। चाहे नरक ही गए हों! सौ में से निन्यानबे नरक ही जा रहे होंगे, जैसा जीवन दिखता है उसमें शायद ही कोई कभी स्वर्गवासी होता हो। लेकिन यहां जो भी मरे, जहां भी मरे-दिल्ली में भी मरो-तो भी स्वर्गवासी! बस मरे कि स्वर्गवासी हो गए! कि परमात्मा के प्यारे हो गए! कि प्रभु ने उठा लिया! मौत शब्द का सीधा उपयोग करने में भी हम घबड़ाते हैं। क्यों?
मौत शब्द से बेचैनी होती है, मौत शब्द में अपनी मौत की खबर मिलती है, धुन मिलती है। मौत शब्द हमें याद दिलाता है कि मुझे भी मरना होगा। देहावसान में ऐसी धुन नहीं मिलती। स्वर्गीय में ऐसा भाव नहीं पैदा होता है, कि चलो किसी दिन हम भी स्वर्गीय हो जाएंगे, कोई बात नहीं, स्वर्ग मिलेगा। मौत बहुत स्पष्ट कह देती है बात को, स्वर्गीय में बहुत छिपाकर बात कही गयी है। जहर को छिपा दिया मिठास में, ऊपर एक शक्कर की पर्त लगा दी।
मरघट को देखते हो, सारी दुनिया में, कोई जाति हो, कोई धर्म हो, कोई देश हो, गांव के बाहर बनाते हैं। और मौत खड़ी है जिंदगी के बीच में। ठीक जहां तुम्हारा