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________________ एस धम्मो सनंतनो एक संस्कार पड़ा। लोगों ने कहा कि तुम हिंदू हो तो तुम मानते हो कि तुम हिंदू हो। तुम हिंदू हो? कैसे? तुम्हें मुसलमान घर में रख दिया होता बचपन से और वहां तुम बड़े हुए होते तो तुम मुसलमान होते। तो यह तो संस्कार है। आए तो थे तुम बिलकुल शुद्ध दर्पण की भांति; कोरा कागज आए थे; फिर उस पर लिखावटें पड़ीं। भारतीय घर में रहे, तो भारतीय भाषा सीखी। अरब में होते तो अरबी सीखते और चीन में होते तो चीनी सीखते। तो भाषा संस्कार है। समझना। भाषा लेकर तुम आए नहीं थे, मौन लेकर आए थे। भाषा सीखी। मौन स्वभाव था, भाषा पर-भाव है। दूसरे ने डाला। जब तुम आए थे, तब तुम न बुद्ध थे, न विद्वान थे। कोई बच्चा न बुद्ध होता, न विद्वान होता। यह तो अभी समय लगेगा, बुद्ध और बुद्धिमान होने में अभी वक्त लगेगा। कई काम होंगे, कई संस्कार पड़ेंगे, स्कूल में परीक्षाएं होंगी, न-मालूम कितनी प्रक्रियाओं से गुजरेगा, तब कोई इसमें विद्वान हो जाएगा, कोई इसमें बुद्ध हो जाएगा। आए थे बिलकुल एक जैसे, हो गए अलग-अलग। ___ संस्कार का अर्थ है, जो हमने जन्म के बाद सीखा। जो सीखा, उसका नाम संस्कार है। संस्कार स्वभाव नहीं है। संस्कार स्वभाव के ऊपर पड़ गयी धूल है। स्वभाव तो है दर्पण जैसा और संस्कार है धूल जैसा। जब धूल की बहुत पर्ते पड़ जाती हैं दर्पण पर, तो फिर दर्पण में प्रतिबिंब नहीं बनता। बुद्ध कहते हैं, जिसने यह सारी धूल झाड़ दी, उसको मैं भिक्षु कहता हूं। और क्यों भिक्षु कहता हूं? क्योंकि न वह हिंदू रहा-गरीब हो गया.उतना; न ब्राह्मण रहा—गरीब हो गया उतना; न चीनी रहा, न हिंदुस्तानी रहा और गरीब हो गया। ऐसे धीरे-धीरे सब छूटता जाता, जो-जो हमने अर्जित किया है, जो-जो हमारी संपत्ति है, वह सब छूट जाती है। संस्कार यानी संपत्ति। फिर कोरा कागज रह गया, उस कोरे कागज को बुद्ध ने कहा, भिक्षु। और ठीक यही अर्थ जीसस का है, पुअर इन स्पिट, जो आत्मा में दरिद्र है। आत्मा में कहीं कोई दरिद्र होता है! आत्मा में तो आदमी समृद्ध होता है। लेकिन मतलब समझ लेना-बाहर के संस्कार जब सब छूट जाते हैं, बाहर की दृष्टि से जब आत्मा बिलकुल कोरी हो जाती है, दरिद्र हो जाती है, तभी भीतर की दृष्टि से समृद्ध होती है। जीसस का पूरा वाक्य है : ब्लेसेड आर द पुअर इन स्प्रिट, फार देयर्स इज द किंगडम आफ गाड। बड़ा अनूठा वचन है। धन्यभागी हैं जो आत्मा में दरिद्र हैं, क्योंकि परमात्मा का राज्य उन्हीं का है। एक ही वचन में दोनों बातें कह दी हैं। बाहर से दरिद्र हो गए, भीतर से इतने समृद्ध हो गए कि परमात्मा के राज्य के मालिक हो गए। यही कारण है, दो शब्द हमने इस देश में चुने हैं। हिंदुओं ने चुना स्वामीसंन्यासी के लिए-बौद्धों ने चुना भिक्षु। हिंदुओं ने भीतर का ध्यान रखा, वह जो 86
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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