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मन की मृत्यु का नाम मौन कुशल तार्किक थे।
ऐसे कुशल तार्किक सारी दुनिया में हुए हैं। उनकी कोई निष्ठा नहीं होती। उनका कोई समर्पण नहीं होता, उनकी कोई आस्था नहीं होती। वे तो केवल तर्क का खेल खेलना जानते हैं। तर्क उनका व्यवसाय होता है। जैसे तुमने व्यवसायी खिलाड़ी देखे न! कोई फुटबाल का व्यवसायी खिलाड़ी है, कि क्रिकेट का व्यवसायी खिलाड़ी है, उसे कोई मतलब नहीं, जो पैसा दे दे वह उसके साथ हो जाता है। ऐसे सोफिस्ट थे, जो पैसा दे दे उसके साथ हो जाते। वकील एक तरह का सोफिस्ट है। ___ यह जो आदमी था हत्थक, एक तरह का सोफिस्ट रहा होगा। उसे विजय की आकांक्षा थी। येन-केन-प्रकारेण, कैसे भी हो, विजय होनी चाहिए। ईमानदारी से हो, बेईमानी से हो, अच्छे रास्ते से हो, बुरे रास्ते से हो, उसे साधन की शुद्धि का कोई खयाल न था। साध्य उसका एक था कि विजय मिलनी चाहिए।
और तुम यही जीवन में भी पाओगे। जिन लोगों के जीवन में विजय की ही आकांक्षा सब कुछ है, वे सभी तरह से विजय पाने की कोशिश करते हैं। धोखाधड़ी से हो, जालसाजी से हो, पाखंड से हो, विजय मिलनी चाहिए। विजय पर ही सारा ध्यान होता है। इसलिए विजय का आकांक्षी कभी धार्मिक नहीं हो सकता। अगर अधर्म से विजय मिलती होगी तो वह क्या करेगा! जब विजय की ही आकांक्षा है तो फिर अधर्म से मिले तो अधर्म ही सही, अधर्म का ही साधन बना लेंगे। धार्मिक व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य विजय नहीं होता। विजय लक्ष्य हुई कि फिर जीवन धार्मिक नहीं रह जाता।
एक दिन वह तीर्थकों को चुनौती दे आया।
तीर्थक उन दिनों के जैन, जैनों का यह नाम है बौद्ध शास्त्रों में, तीर्थंकर को मानने वाले तीर्थक।
वह एक दिन तीर्थकों को चुनौती दे आया और कह आया, अमुक-अमुक स्थान पर मिलो, अमुक-अमुक समय पर। वहीं शास्त्रार्थ होगा, और तुम्हारी हार निश्चित है। और फिर समय के पूर्व ही जाकर लोगों से बोला, देखो, तीर्थक भाग गए। यही उनकी हार है।
समय दिया, स्थान बताया और समय के पहले वहां पहुंचकर लोगों से कह दिया कि देखो भाग खड़े हुए वे लोग। यह उनकी हार है।
भगवान को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने हत्थक को बुलाकर कहा, क्या भिक्षु, तू सचमुच ऐसा करता है! यह तो हद्द हो गयी।
यह तो झूठ की हद्द हो गयी। यह कोई जीतना जीतना हुआ। पहले तो विवाद व्यर्थ, पहले तो विजय की आकांक्षा व्यर्थ, और फिर ऐसे उपाय! कि उनको एक समय दिया, उसके पहले पहुंच गया, अभी वे आए ही नहीं थे, कि तूने बता दिया, लोगों को खबर कर दी कि वे भाग खड़े हुए हैं। यह भी कोई विजय हुई।
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