SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन की मृत्यु का नाम मौन स्वयं को नहीं जीता। असल में स्वयं को न जीतने की बात इतनी पीड़ा देती है, स्वयं को न जीतने की बात इतना घाव बन जाती है कि इस घाव को किसी तरह दूसरों पर जीत बनाकर तुम भुला लेना चाहते हो। पर-विजय पर वही जाता है जो भीतर पराजित है। जो जानता है, अपने पर तो विजय हो नहीं सकी-किसी तरह दूसरों के सिरों पर झंडे गाड़ दूं। दूसरों को हराना आसान है। अपने को हराना कठिन है। क्योंकि तुम जो भीतर हो, छोटे नहीं हो। तुम तो बड़े हो, बहुत बड़े हो, बड़े आयाम हैं तुम्हारे। तुम्हें अपने पूरे होने का पता ही नहीं है। तुम्हारी बड़ी गहराइयां हैं, गहराइयों पर गहराइयां हैं, ऊंचाइयों पर ऊंचाइयां हैं। तुम चढ़ोगे तो गौरीशंकर छोटा पड़ जाएगा तुमसे। तुम गहरे उतरोगे तो प्रशांत सागर उथला हो जाएगा तुमसे। तुमने अपने को जाना नहीं। तुम तो द्वार-दरवाजे पर खड़े हो, तुम अपने महल में प्रविष्ट ही नहीं हए। जितनी बड़ी दुनिया बाहर है, उतनी बड़ी दुनिया प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर लिए चल रहा है। और बाहर जो दुनिया है, इससे ज्यादा गहरी और ज्यादा मूल्यवान दुनिया भीतर लेकर चल रहा है। बाहर के साम्राज्य को पाने के लिए वही उत्सुक होता है, जो भीतर दरिद्र है, जिसको भीतर के साम्राज्य का कोई पता नहीं है। जो अपना सम्राट नहीं है, वह दूसरों का सम्राट बनने को उत्सुक होता है। .. इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि राजनीति और धर्म का मेल नहीं होता। ये विपरीत आयाम हैं। राजनीति का अर्थ है, दूसरे पर ताकत। धर्म का अर्थ है, अपने पर ताकत। राजनीतिज्ञ अधार्मिक होगा ही। राजनीतिज्ञ और धार्मिक हो, यह असंभव है। और धार्मिक राजनीतिज्ञ हो, यह भी असंभव है। अगर तुम धार्मिक को राजनीतिज्ञ पाओ, तो समझ लेना कि धार्मिक नहीं है। और अगर तुम राजनीतिज्ञ को धर्म की बातें करते पाओ, तो समझ लेना कि यह भी राजनीति का एक उपाय है। ये दोनों एक साथ हो नहीं सकते, यह असंभव है। जैसे कि तुम ऊपर-नीचे एक साथ नहीं जा सकते। जैसे कि तुम बाएं-दाएं एक साथ नहीं जा सकते। जैसे कि उत्तर-दक्षिण एक साथ नहीं जा सकते। ऐसे ही कोई व्यक्ति राजनीति और धर्म में एक साथ नहीं जा सकता। राजनीति का अर्थ है, दूसरे पर कब्जा करने की चेष्टा। राजनीति हिंसा है। और धर्म का अर्थ है, अपने पर विजय की यात्रा। धर्म अहिंसा है। फिर तुम कैसे दूसरों पर विजय पाने की कोशिश करते हो, यह बात गौण है। कोई तलवार से करता है, कोई धन से करता है, कोई पद-प्रतिष्ठा से करता है, कोई तर्क से करता है, कोई ज्ञान से करता है। कोई त्याग से भी करता है, खयाल रखना। त्याग से भी वही हो जाता है। तुमने गांव में सबसे ज्यादा त्याग कर दिया, तो तुमने सारे गांव पर विजय पा ली। तुमने सारे गांव को हरा दिया। कौन तुम जैसा दानी है! तुमने एक बड़ा उपवास 74
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy