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________________ एस धम्मो सनंतनो यह तो मैंने मान ही लिया कि विवाह हो गया होगा, नहीं तो यहां क्या कर रहे हो? ___पति घबड़ाते हैं घर आने से। घर तो एक ऐसा लगता है, जैसे छोटे बच्चों को स्कूल, ऐसा पतियों को घर स्कूल-पाठशाला। जहां हर तरह का शिक्षण दिया जाएगा कि जूते कहां उतारो, कपड़े कहां डालो, सिगरेट मत पीओ, रेडियो इतने जोर से मत बजाओ-हजार शिक्षण दिए जाएंगे। धीरे-धीरे पत्नी जो है वह शिक्षिका हो जाती है और अपने हाथ से अपने प्रेम के तंतओं को तोड़ डालती है। प्रेम के तंतु बहुत कोमल हैं। यह शिक्षक होने का, यह गुरु होने का जो उपाय है, यह घातक हो जाता है। लेकिन पत्नी के पास इसके सिवाय कोई उपाय नहीं रहा है कि वह कैसे अपने अहंकार को स्थापित करे। पत्रों में तो वह लिखती है जब भी कि प्रियतम, आपकी दासी, इत्यादि। मगर वह तो पत्रों की बात है, पत्रों पर जाना ही मत। पत्रों में तो.लोग लिखते ही वे बातें हैं जो होती नहीं। पत्रों में तो वह लिखते हैं जो होना चाहिए था और हो नहीं रहा है। लेकिन बदला लेती है। बदला लेगी ही। तुमने सब तरह से स्त्री को परेशान कर रखा है। तुमने स्त्री को आत्मा तक देने का बड़े मुश्किल से तय किया। ___ मैंने सुना है, छठवीं शताब्दी में ईसाइयों की एक बड़ी कैथोलिक कांफ्रेंस हुई, जिसमें उन्होंने यह विचार किया कि स्त्री में आत्मा होती है या नहीं? वह तो संयोग की बात कहो-वोटिंग हुई इस पर, मत पड़ा; अब स्त्री की आत्मा होती कि नहीं इस पर वोट पड़ा-और एक वोट से जीत गयीं स्त्रियां, नहीं तो उनमें आत्मा नहीं मानी जाती। एक वोट से! यह कोई जीत हुई! पचास खिलाफ पड़ीं, इक्यावन पक्ष में पड़ी समझो, कि स्त्री में आत्मा होती है। एक वोट के आधार पर आत्मा है स्त्री में। और परब के देशों ने तो इतना भी फिकर नहीं किया, वे तो स्त्री को कहते ही हैं-स्त्री-धन। संपत्ति ! जर, जोरू, जमीन। वहां जोड़ते हैं। संपत्ति है। चीन में तो अपनी पत्नी को मार डालने पर कोई कानून नहीं लगता था। अपनी पत्नी है, मार डाला, किसी को क्या? थोड़े दूर तक यह नियम अभी भी चलता है। मैं रायपुर में रहता था। एक रात–आधी रात-मैंने पड़ोसी को देखा, वह अपनी पत्नी को मार रहा है। तो मैं अंदर चला गया, मैंने कहा, यह क्या कर रहे हो? उसने कहा कि आप यहां क्यों आए? वह मेरी पत्नी है! मैंने कहा, तुम्हारी पत्नी है, मैं कुछ कहता भी नहीं। तुम प्रेम करो तो मुझे कोई एतराज भी नहीं। अगर तुम प्रेम करो और मैं आऊं तो एतराज हो सकता है, लेकिन तुम उसके सिर में मार दिए, खून बह रहा है! लेकिन उसकी बात तो ठीक है, वह कह रहा है, वह मेरी पत्नी है, आप बीच में कौन हैं बोलने वाले? वही पुरानी दलील है, पुराना तर्क है कि मेरी पत्नी है, मैं मार डालूं! अदालतों में मुकदमा नहीं चलता था चीन में अपनी पत्नी को मार डालने से। इस देश में भी हालत बड़ी बुरी रही है। 62
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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