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एस धम्मो सनंतनो
ही समझो कि थोड़ी अशद्धि थी, थोड़ी धूल जम गयी थी दर्पण पर, धुल हट गयी। क्या यही है निर्वाण? यही है मुक्ति? तो फिर मुझे इतने उपाय और इतने प्रयास और इतनी साधनाएं करने को क्यों कहा था? गुरु हंसने लगा। गुरु ने कहा, इसलिए ही कहा था कि तुम थक जाओ। तुम्हें खूब दौड़ाया, ताकि तुम थककर बैठ जाओ।
सारा योगशास्त्र सिर्फ इसीलिए है कि तुम थक जाओ। संसार तुम्हें नहीं थका पाया। अगर समझदार होते तो संसार ही काफी था। संसार नहीं थका पाया तो फिर पतंजलि की, बुद्ध की, महावीर की जरूरत है। अगर जरा भी समझदार होते तो संसार ने ही काफी थका दिया है, तुम रुक जाते, तुम बैठ जाते। तुम कहते, बहत हो गया, अब यहां कुछ पाने को नहीं है, कुछ खोजने को नहीं है, कुछ छोड़ने को नहीं है, तुमने आंख बंद कर ली होतीं। आंख बंद करते ही तुम पाते कि तुम तो वहां विराजमान ही हो। जिसकी तुम खोज करते थे, तुम वहां बैठे ही हो।
एक और झेन-कथा। झेन-कथाएं बुद्ध धर्म की ही शाखाएं हैं, बुद्ध की ही प्रशाखाएं हैं। ___ एक नया भिक्षु आया था। सदगुरु हुई ची ने उससे पूछा, तुम्हारा नाम क्या है बंधु? उस भिक्षु ने कहा, लिंग तुंग। लिंग तुंग का अर्थ होता है, आध्यात्मिक व्याप्ति या सर्वव्यापक आत्मा। इसको आधार बनाकर हुई ची ने एक बढ़िया प्रश्न उठाया। अतिथि भिक्षु से उन्होंने कहा, यह लालटेन देख रहे, लिंग तुंग, सर्वव्यापक आत्मा, यह लालटेन देख रहे? लालटेन जलती थी। अब कृपा करके लिंग तुंग महोदय इसमें प्रवेश कर जावें, क्योंकि आप तो सर्वव्यापी हैं।
झेन फकीर ऐसे प्रश्न उठा देते हैं। बड़े बहुमूल्य प्रश्न हैं, समझ में आ जाएं तो। न समझ में आएं तो बड़े बेबूझ हैं, पागलपन के मालूम पड़ते हैं। अब यह भी कोई बात हुई। उस आदमी ने कहा, लिंग तुंग मेरा नाम है-सर्वव्यापक आत्मा-और यह हुई ची ने एक सवाल उठा दिया कि तब बिलकुल ठीक, मान लिया कि आप लिंग तुंग हैं, सर्वव्यापी हैं, जरा इस लालटेन में प्रवेश कर जाइए। रात्रि थी और कमरे में लालटेन जल रही थी, हुई ची ने खूब अदभुत प्रश्न पूछा। लेकिन जो उत्तर मिला उस अतिथि भिक्षु से, वह और भी अदभुत था। लिंग तुंग ने कहा, मैं तो पूर्व से ही वहां बैठा हुआ हूं। आई एम आलरेडी इनसाइड इट। सर्वव्यापक का मतलब ही यह होता है कि जो सब जगह मौजूद है, अब इसमें और कैसे घुस जाऊं? बैठा ही हुआ हूं, पहले ही से यहां मौजूद हूं!
मोक्ष तुम्हारा स्वभाव है, पहले से ही घट गया है। घटा ही हुआ है। परमात्मा तुम्हारे भीतर मौजूद है। परमात्मा को पाना नहीं है, संसार को छोड़ना नहीं है। यह अदभुत बात खयाल में रखना। तुमसे सदा यही कहा गया है, संसार को छोड़ना है और परमात्मा को पाना है। मैं तुमसे कहता हूं, परमात्मा को पाना नहीं है और संसार को छोड़ना नहीं है। क्योंकि संसार में कुछ छोड़ने जैसा है नहीं, छूटा ही हुआ है।