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________________ क्षण है द्वार प्रभु का सपना है वह सपना न मालूम पड़े, वह यथार्थ हो जाए। इतने लोगों का बल मिल जाए उसको तो यथार्थ हो जाए, सामूहिक सम्मोहन के आधार पर यथार्थ हो जाए। तो घोड़े पर बिठाते दूल्हे को, गांव में फेरी निकालते। वह सब इस बात के उपाय हैं कि उसको यह भरोसा आ जाए कि यह बात कुछ ऐसी ही नहीं है, कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। अब एक मेरे मित्र हैं, पत्नी से परेशान हैं, कई साल से परेशान हैं। तो मैंने उनसे कहा, जब इतने परेशान हो और वह भी परेशान है और दोनों को कोई शांति नहीं है तो अलग क्यों नहीं हो जाते? वह बोले, कैसे अलग हो जाएं? सात फेरे पड़े हैं। तो मैंने कहा, तुम ले आओ पत्नी को, मैं उलटे फेरे डलवा देता हूं; और क्या इससे ज्यादा! घोड़े पर बैठना है, उलटे घोड़े पर बिठाकर घुमा देंगे, और क्या! बैंड-बाजा चाहिए, बैंड-बाजा बजवा देंगे। भीड़-भाड़ चाहिए, काफी है। तुम चाहते क्या हो? एक सम्मोहन है, उसको तोड़ने के लिए और सम्मोहन चाहते हो, तो वह भी किया जा सकता है। मगर इससे क्या फर्क पड़ता है! बोध की जरूरत है। कौन पत्नी तुम्हारी है? कौन पति तुम्हारा है? कौन बेटा तुम्हारा है? बुद्ध ने अपने पिता से कहा था कि मैं आपसे जरूर आया, लेकिन आपका नहीं हूं। आप माध्यम बने हैं, आप से मैं गुजरा, लेकिन आपकी कोई मालकियत नहीं है। जैसे कोई रास्ते से गुजरता है, तो रास्ते का थोड़े ही हो जाता है! तो एक बेटा मां के गर्भ से गुजरा, यह तो रास्ता हुआ, इसमें तुम्हारा क्या हो जाएगा। मगर नहीं, रास्ता खड़ा हो जाता है, कहता है कि मेरा है। फिर अड़चन शुरू हो जाती है। हम मेरे-तेरे के जंजाल खड़े कर लेते हैं, हम मेरे-तेरे की सीमाएं खींच लेते हैं। फिर हम जोर से उनको पकड़ लेते हैं, उनमें हमारा बड़ा स्वार्थ निहित हो जाता है, उनमें हमारे प्राण अटक जाते हैं। संसार किसी को बांधे हुए नहीं है। तुम पूछते हो, 'संसार से मुक्ति कैसे हो?' संसार में है क्या! चांद चुक गया रात रह गयी बाकी पतझड़ के अंजुरियाभर छंद केसर महका माधव से चलकर जो आया सो बहका, हर छाया लहक उठी हर एक साया लहका चांदनिया राख हुई
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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