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________________ धर्म म आ जाता है, कोई तड़फन नहीं रह जाती। कुछ हो, ऐसी वासना नहीं रह जाती। जो होता है, ठीक होता है; और जो होता, समय पर होता है । कोई चीज गैर-समय पर नहीं होती। सब चीजें अपने समय पर होती हैं। जब बसंत आता, फूल खिल जाते हैं; जब ऋतु पकती, वृक्ष फलों से लद जाते । सब समय पर होता है। अधैर्य क्या है ? अधैर्य करने की जरूरत क्या है ? समय के अन्यथा कभी कुछ होता नहीं । सब अपने समय पर होता है । सब जैसा हो रहा है, ठीक ही हो रहा है, ऐसी प्रतीति का नाम धैर्य है। तो ऐसे व्यक्ति में बड़ी क्षमता पैदा हो जाती है। अपूर्व झील बन जाता है ऐसा व्यक्ति । उसमें लहर नहीं उठती तनाव की । और अवैर । किससे वैर ? यहां सब एक ही का वास है। यहां एक ही का निवास है। ये एक ही की तरंगें हैं । तो किससे वैर, कोई दूसरा नहीं है । और निर्भय । जब वैर नहीं और दूसरा नहीं, तो फिर भय कैसा ! ऐसी दशा में ही कोई व्यक्ति पंडित कहलाता है। यह बुद्ध की पंडित की नयी परिभाषा । इसमें न तो वेद के जानने से पांडित्य को कहा, न ब्राह्मण के घर में पैदा होने से पांडित्य को कहा, समाधिस्थ होने से पांडित्य को कहा। पंडित शब्द का मौलिक अर्थ यही है, प्रज्ञावान । जिसकी प्रज्ञा जाग गयी हो। समाधि में ही जराती है प्रज्ञा । तीसरा दृश्य : ― लकुंटक भद्दीय स्थविर नाटे थे- -अति नाटे । एक दिन अरण्य से तीस भिक्षु भगवान का दर्शन करने के लिए जेतवन आए। जिस समय वे शास्ता की वंदना करने जा रहे थे, उसी समय लकुंटक भद्दीय स्थविर भगवान को वंदना करके लौटे थे। उन भिक्षुओं के आने पर भगवान ने पूछा, क्या तुम लोगों ने जाते हुए एक स्थविर को देखा है? भंते, हम लोगों ने स्थविर को तो नहीं देखा, केवल एक श्रामणेर जा रहा था। भगवान ने कहा, भिक्षुओ, वह श्रामणेर नहीं, स्थविर है । भिक्षु बोले, भंते, अत्यंत छोटा है। इतना छोटा, कैसे कोई स्थविर होगा ! भगवान ने कहा, भिक्षुओ, वृद्ध होने और स्थविर के आसन पर बैठने मात्र से कोई स्थविर नहीं होता। किंतु जो आर्य-सत्यों का ज्ञान प्राप्त कर महा जनसमूह के लिए अहिंसक हो गया है, वही स्थविर है। स्थविर का संबंध उम्र या देह से नहीं, बोध से है। बोध न तो समय में और न स्थान में ही सीमित है। बोध समस्त सीमाओं का अतिक्रमण है। बोध तादात्म्य से मुक्ति है। और तब उन्होंने ये गाथाएं कहीं न तेन थेरो होति येनस्स पलितं सिरो। परिपक्को वयो तस्स मोघजिण्णोति वुच्चति ।। 31
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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