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________________ एस धम्मो सनंतनो चाहिए। लेकिन ठीक-ठीक पर्याप्त थोड़े ही है । तुम बिलकुल दोहरा दो मशीन की तरह बुद्ध के वचन, लेकिन अगर बुद्धत्व तुम्हारे भीतर फलित न हुआ हो, तो तुम्हारी वाणी निर्वीर्य होगी, निष्प्राण होगी। देवता चुप रहे। कोई निनाद न हुआ, कोई उदघोषणा न हुई । तब उस बूढ़े ने उपदेश किया, झिझकते-झिझकते, संकोच से भरे हुए। बड़ा परेशान हुआ होगा बूढ़ा कि क्या हुआ ? मुझ अज्ञानी की बात सुनकर देवता साधुवाद करते हैं, इन ज्ञानियों की बात सुनकर साधुवाद न किया ! तो झिझका होगा। लेकिन जब उसने अपना वही संक्षिप्त सा उपदेश दोहराया, तो साधुवाद का झंकार उठा । सारा जंगल मन-प्राण से साधुवाद कर उठा। पंडित की भ्रांति देखो। पहले सोचा, यह बूढ़ा पागल । अब बात तो बदल दी, अब तो यह बात समझ में आ गयी कि देवता भी हैं, तो अब देवता पागल ! क्योंकि इस बूढ़े की बात में क्या रखा है। फिर भी पंडितों को न दिखायी पड़ा - पंडित का अंधापन बड़ा गहरा होता है- फिर भी उन्हें न दिखायी पड़ा कि जब इतना विराट उदघोष उठा है, तो जरूर इस बात में कुछ होगा, जो हमारी समझ में नहीं आ रहा है। बात सीधी-सादी थी। कुछ बड़ी गहरी न थी । लेकिन बात की गहराई बात में थोड़े ही होती है, बात की गहराई अनुभव में होती है। वे दोनों तो चुप ही रहे। लौटकर उन्होंने बुद्ध को यह बात भी न बतायी, क्योंकि यह तो उनके अहंकार का खंडन होता। लेकिन उनके शिष्यों ने बुद्ध को कहा। तो बुद्ध ने कहा, सत्य शास्त्र में नहीं, सत्य शब्द में नहीं, सत्य तथाकथित बौद्धिक ज्ञान में नहीं; सत्य है अनुभव, अनुभूति । जिसने समाधि जानी, उसने सत्य जाना। और समाधि से जो सुगंध उठती है, उस सुगंध में अगर जगत आंदोलित हो उठे, उत्सव से भर जाए, तो इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है। वही उपदेश था, एकुदान ने जो उपदेश किया, वही उपदेश था। इन पंडितों ने जो कहा, वह तो व्यर्थ की बकवास थी । इसे स्मरण रखना। जब तक तुम्हारी समाधि न पके तब तक तुम जो भी कहोगे, वह बातचीत ही बातचीत है। इसलिए सारी शक्ति समाधि के पकने में लगाना । सारी शक्ति, सारी ऊर्जा एक ही बात पर दांव पर लगा देनी है कि तुम्हारे भीतर अनुभव घटित हो जाए। ईश्वर - ईश्वर की गुहार न मचाओ, आत्मा आत्मा के शब्द मत दोहराओ, कुछ जीओ, कुछ जानो । किसी दिन ऐसा हो सके कि तुम क्षीणास्रव हो जाओ और तुम्हारे भीतर से सत्य का सहज उदघोष उठे। तब बुद्ध ने कहा, बहुत भाषण करने से कोई पंडित नहीं, बल्कि जो क्षेमवान है, जिसके भीतर अवैर है, निर्भय है जो, और जिसके भीतर क्षमा है, और जिसके भीतर धैर्य है...। ये सब समाधि की छायाएं हैं। समाधि के आते ही धैर्य आ जाता है, अनंत धैर्य 30
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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