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एस धम्मो सनंतनो
तो उस बूढ़े ने कहा कि मुझ बूढ़े का भी उपदेश वे सुनते हैं, देवता हैं, भले लोग हैं, तो धन्यवाद भी देते हैं, हालांकि मैं जानता हूं, ऊब गए होंगे।
ये त्रिपटकधारी महापंडित इस बूढ़े पागल की बात सुनकर एक-दूसरे की तरफ अर्थगर्भित दृष्टियों से देखते हुए मुस्कुराए। अकेले रहते-रहते यह एकुदान विक्षिप्त हो गया है, उन्होंने सोचा। अन्यथा कोई एक ही उपदेश रोज-रोज देता है! फिर कहां के देवता! आह, बेचारा! इस बूढ़ी अवस्था में मन इसका कपोल-कल्पनाओं से भर गया है। यह यथार्थ से च्युत हो गया है।
फिर उन दोनों ने बारी-बारी से उपदेश दिया। वे बड़े पंडित थे, त्रिपटक के ज्ञाता थे, बुद्ध के सारे वचन उन्हें कंठस्थ थे, पांच-पांच सौ उनके शिष्य थे। उन्होंने बारी-बारी से उपदेश दिया-शास्त्र-सम्मत, पांडित्य से भरपूर, तर्क से प्रतिष्ठित। उनके शिष्यों ने हर्षध्वनि की साधु! साधु! बूढ़ा एकुदान भी परम आनंदित हुआ। बस एक ही बात उसे खटक रही थी कि जंगल के देवता कुछ भी न बोले। जंगल के देवता चुप थे सो चुप ही रहे। उसने यह बात पंडितों को भी कही कि बात क्या है? आज जंगल के देवता चुप ही क्यों हैं? इनको क्या हो गया? आज ये कहां चले गए? ये रोज मेरा उपदेश सुनते हैं और साधुवाद से पूरा जंगल भर जाता है। और आज ऐसा परम उपदेश हुआ, ऐसा ज्ञान से भरा!
वे फिर, वे पंडित फिर इस बूढ़े पागल की बात पर हंसे। मजाक में ही उन्होंने इस बूढ़े को भी उपदेश देने को कहा। उन्होंने सोचा कि चलो इसका एक उपदेश भी सुन लें।
बूढ़ा बड़े संकोच से धर्मासन पर गया और उसने और भी संकोच और झिझक से अपना वह एक ही संक्षिप्त सा उपदेश दिया। उपदेश के पूरे होते ही जंगल साधु! साधु! साधु! के अपूर्व निनाद से गूंज उठा। जैसे वृक्ष-वृक्ष से आवाज उठी, पत्थर-पत्थर से आवाज उठी-सारे जंगल के देवता! ___पंडित तो बड़े हैरान हुए। तो यह बूढ़ा पागल नहीं था। देवता थे। और अब पंडितों ने सोचा, मालूम होता है, देवता पागल हैं। क्योंकि इसके उपदेश में कुछ खास बात ही नहीं, साधारण सा उपदेश है, जो कोई भी दे दे। __ अब ऐसा उन पंडितों ने सोचा कि ये जंगल के देवता पागल हैं। पहले सोचते थे, यह बूढ़ा पागल है, देवता कहीं होते! अब उन्होंने सोचा कि देवता तो जरूर हैं और बूढ़ा पागल भी नहीं है, मगर देवता पागल हैं। क्योंकि हमने इतने पांडित्य की बातें कहीं और इनकी समझ में न आयीं, और इस बूढ़े का वही उपदेश! - वे दोनों तो इस संबंध में चुप ही रहे, लेकिन उनके शिष्यों ने भगवान से जाकर यह अपूर्व चमत्कार की बात कही। भगवान ने उनसे कहा, सत्य शास्त्र में नहीं है, सत्य शब्द में भी नहीं है, सत्य तथाकथित बौद्धिक ज्ञान में भी नहीं है, सत्य है अनुभव। और अनुभव शून्य में प्रगट होता है, मौन और आंतरिक एकांत में प्रगट
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