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धर्म तुम हो
वकील तो नहीं हो सकता। वह कुछ और हो जाए, मगर वकील नहीं हो सकता। वकील का तो मतलब ही यही है कि उसमें ऐसी कुशलता हो कि झूठ को सच की तरह स्थापित करे, सच को झूठ की तरह स्थापित करे। इसमें जितनी कुशलता होगी, उतना बड़ा वकील। फिर यही बड़े वकील न्यायाधीश बन जाते हैं। एक अजीब जाल है।
वकील की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। जब तक वकील है, तब तक दुनिया में न्याय नहीं हो सकता। न्याय के लिए वकील की क्या जरूरत है! एक आदमी ने कसूर किया है, वह आदमी खड़ा हो, जिसके साथ कसूर किया है, वह आदमी खड़ा हो, इन दोनों के बीच वकील की क्या जरूरत है! वकील जब तक बीच में खड़ा है, तब तक बात साफ नहीं हो सकती। वह जाल निकालेगा, तरकीब निकालेगा, उपाय निकालेगा, वह बातों को घुमाएगा, फिराएगा, वह उनको नया रंग देगा, नया ढंग देगा, वह सारी चीज को ऐसा उलझा देगा कि सुलझाना मुश्किल हो जाए।
न्यायाधीश कैसे न्याय करेगा जब तक उसे ध्यान की किसी प्रक्रिया से गुजरने का मौका न मिला हो। और कहीं दुनिया की किसी कानून की किताब में नहीं लिखा है कि न्यायाधीश पहले ध्यान करे। लिखा ही नहीं है! ध्यान से न्यायाधीश का क्या संबंध!
न्यायाधीश पहले ध्यान करे, पहले चित्त की उस अवस्था को उपलब्ध हो, जहां उस पर अचेतन के प्रभाव नहीं पड़ते। नहीं तो बलशाली आदमी खड़ा है अदालत में, मुश्किल हो जाता है। धनी आदमी खड़ा है अदालत में, मुश्किल हो जाता है। अचेतन बलपूर्वक काम करवा लेता है। पद वाला आदमी खड़ा है, मुश्किल हो जाता है।
तुम देखते हो, अभी इस देश में थोड़े दिन पहले जो लोग पद पर थे, तब तक एक बात थी। तब तक अदालतें उनके पक्ष में थीं, न्यायाधीश उनके पक्ष में थे, कानून उनके पक्ष में था। अब सब उनके विपक्ष में हैं। अब हजार भूलें खोजी जा रही हैं। यह सब भूलें तब हुई थीं, अब नहीं हो रही हैं। जब हुई थीं, तब किसी ने न खोजी, अब खोजी जा रही हैं। ___ यह कैसे होता है ? जिनके पास ताकत है, जिनके पास पद है, प्रतिष्ठा है, उनकी भूलें कोई खोजता ही नहीं। और तुम यह मत सोचना कि अब जो भूलें खोजी जा रही हैं, वे सभी सच होंगी। यह भी मत सोचना। अब जो भूलें खोजी जा रही हैं, वे नए सत्ताधिकारियों को प्रसन्न करने के लिए खोजी जा रही हैं, उसमें पचास प्रतिशत झूठ होंगी। उससे भी ज्यादा झूठ हो सकती हैं। जैसे पहले भूलें न खोजने का झूठ चला, अब भूलें खोजने का झूठ चलेगा।
और तुम यह मत सोचना कि पहले जो लोग चुप रहे, वे बेईमान थे और अब जो लोग बोल रहे हैं, वे ईमानदार हैं। अब इनके बोलने में उतनी ही बेईमानी है, जितनी कि न बोलने वालों के न बोलने में बेईमानी थी। ___ मनुष्य का चित्त इतना उलझा हुआ है! अब तुम यह मत सोचना कि ये बड़े क्रांतिकारी लोग हैं, जो सारी बातें निकालकर रख रहे हैं। ये ठीक वही के वही बेईमान
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