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________________ एस धम्मो सनंतनो झपकी खा रहा है। यह कैसे निर्णय करेगा! शायद इसने पहले ही निर्णय कर रखा है। यह सुनने की फिकर में ही नहीं पड़ा है। या शायद इसी नींद में यह निर्णय कर देगा। इसे इतनी भी चिंता नहीं है कि दूसरों के जीवन का सवाल है। और यह झपकी ले रहा है। शायद रात देर तक ताश खेलता रहा होगा, या शराब पी होगी, या वेश्या के घर गया होगा। और यह निर्णय करने बैठा है, लोगों के जीवन का निर्णय! किसी को देखा कि उसकी आंख से साफ पक्षपात दिखायी पड़ रहा है। साफ दिखायी पड़ रहा है कि उसने निर्णय पहले ही कर लिया है, अब तो वह कामचलाऊ सुन रहा है। शायद उसने रिश्वत ले ली है, शायद उसका कोई संबंध है, शायद उसकी कोई नाते-रिश्तेदारी है, कोई भाई-भतीजावाद है। देखा कि कोई बिलकल बहरे की तरह सुन रहा है। आंखें तो खुली हैं, कान भी खुले हैं, मगर कहीं और है। कोई और विचार में पड़ा होगा। किसी स्त्री के प्रेम में पड़ा होगा, उसकी तस्वीर चल रही है। या कुछ और धन कमाना होगा, उसकी योजना बन रही है। तो बहरे की तरह सुन रहा है कोई। कोई अंधे की तरह देख रहा है। आंखें तो खुली हैं, लेकिन देख नहीं रहा है। कहीं और देख रहा होगा, कोई दूर के दृश्य में उलझा होगा। यह भिक्षुओं को दिखायी पड़ा। यह तुम गए होते तो तुम्हें दिखायी न पड़ता। क्योंकि तुम उसी दुनिया के हिस्से हो, जिस दुनिया में ये अदालतें चलती हैं। तुम्हें कुछ भी अड़चन न मालूम पड़ती। __गुरजिएफ अपने शिष्यों को लेकर एक बार तीन महीने के लिए जंगल में रहा। और तीन महीने पूर्ण मौन में अपने शिष्यों को रखा। पूर्ण-मौन, बेशर्त मौन था, उसमें कोई समझौते की गुंजाइश न थी। मौन का अर्थ था, न तो बोलना, न दूसरे की तरफ देखना, न आंख से कोई इशारा करना, न हाथ से कोई इशारा करना-क्योंकि वह सब बोलना है। अगर दो मौन में मिलने वाले रास्ते पर मिले और उन्होंने ऐसे सिर झुका दिया तो बात खतम हो गयी। गुरजिएफ ने तो यह भी कहा कि अगर तुम्हारे चलते किसी के पैर पर पैर पड़ जाए तो भी तुम इस तरह का भाव प्रगट मत करना कि तुमने दूसरे के पैर पर पैर रख दिया, क्षमा करो। सरक भी मत जाना इस तरह, नहीं तो वक्तव्य हो गया। बोले न बोले, यह सवाल नहीं है। एक छोटे से बंगले में तीस आदमियों को रख दिया, बड़ी मुश्किल हो गयी। एक-एक कमरे में चार-चार, छह-छह लोग थे। अब चार-चार, छह-छह लोगों के साथ कैसे बिलकुल बिना इशारा किए भी बैठे रहो! अनजाने इशारे होने लगे, गुरजिएफ लोगों को निकालने लगा। तीन महीने पूरे होते-होते तीस में से केवल तीन व्यक्ति बचे। जिसको भी उसने देखा कि जरा भी उसकी भाव-भंगिमा बोलने की है, उसको उसने बाहर कर दिया। मगर उन तीन व्यक्तियों पर अपूर्व घटना घटी। तीन महीने के बाद उन तीन व्यक्तियों को लेकर गुरजिएफ ने कहा, आओ, अब 18
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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