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________________ एस धम्मो सनंतनो ईश्वर की खोज दुस्साहसी का काम है। खयाल रखना, साहसी भी नहीं कह रहा हूं, दुस्साहसी। क्योंकि बहुत कुछ गंवाना पड़ेगा, पाने के लिए गंवाना पड़ता है। बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ेगा। यह सुविधा और सरलता से नहीं हो जाएगा। पूरा जीवन जुआरी की तरह लगाने की जिनकी हिम्मत होती है, वे ही। और अड़चन यह है कि मार्ग कठिन और मंजिल का पक्का नहीं कि कहां होगी, होगी कि नहीं होगी, पूरब होगी कि पश्चिम होगी। पता नहीं कौन ठीक कहता है! बुद्ध ठीक कहते हैं, कि महावीर ठीक कहते हैं, कि कृष्ण, कि क्राइस्ट, हजार विकल्प हैं। और मंजिल बहुत दूर है, कुहासे में छिपी है और रास्ता बड़ा दुर्गम है। चार कदम तक दिखायी पड़ता है, फिर रास्ता अंधेरे में दबा है। ___इसलिए जो लोग जीवन की व्यर्थता को पूरी तरह समझ गये हैं और जो जानते हैं कि चाहे ईश्वर न भी हो तो भी खोजने योग्य है, क्योंकि यहां जीवन में तो बैठे रहने से कुछ भी सार नहीं है। यहां जीवन तो व्यर्थ हो ही गया, अब उठ पड़ो और चल पड़ो, अब दांव पर लगाया जा सकता है। खोने को कुछ भी नहीं है, अगर मिला तो ठीक, नहीं मिला तो कुछ भी नहीं खोया। खोने को कुछ था ही नहीं, जीवन को तो देख लिया था, सब पन्ने पढ़कर देख लिये थे। फिर सत्य की खोज पर बड़ी कसौटियां आती हैं। मैं एक छोटी सी घटना पढ़ रहा था। ईसाई संत हुई, अपूर्व महिला हई, टेरेसा। दुनिया में थोड़ी सी महिलाओं ने ऐसी ऊंचाई पायी है—किसी मीरा ने, सहजो ने, दया ने, लल्ला ने बहुत थोड़ी सी महिलाओं ने। टेरेसा उनमें से एक है। टेरेसा एक बार एक नाले को पार कर रही थी। चूक से उसका पैर फिसल गया और वह बाढ़ आए नाले में डूबते-डूबते बची। पैर में चोट भी खा गयी, मोच भी आ गयी, चमड़ी भी छिल गयी पत्थर पर गिरकर, संभवतः हड्डी भी टूट गयी हो। वह बूढ़ी भी हो गयी थी, किसी प्रकार किनारे लगी और उसने सिर उठाकर ईश्वर से कहा, आकाश की तरफ देखकर कहा, हे प्रभु, मुझसे व्यवहार करने का यह कैसा तुम्हारा ढंग! इज दिस दि वे यू ट्रीट मी! यह कोई बात हुई! एक बूढ़ी औरत को ऐसे गिरा देना बीच नाले में। सब छोड़ दिया था परमात्मा पर। तो जिन्होंने सब छोड़ा है, वही इस तरह की दिल खोलकर बात भी कर सकते हैं कि यह कोई बात हुई, यह कोई ढंग हुआ तुम्हारा, यह कोई व्यवहार है! और उत्तर में उसने आकाशवाणी सुनी, कभी-कभी मैं अपने मित्रों के साथ ऐसा व्यवहार भी करता हूं। बट समटाइम्स दिस इज हाऊ आई ट्रीट माई फ्रेंड्स। ईश्वर की आवाज गूंजी कि हां, ऐसा-ऐसा कभी-कभी मैं व्यवहार अपने मित्रों के साथ करता हूं। शत्रुओं के साथ तो ईश्वर बड़ा दयालु है। क्षमा करने को तैयार है। मित्रों के साथ बहुत कठिन है। कारण है। मित्रों को कसता है। मित्रों के लिए परीक्षा। शत्रुओं 296
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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