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सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का
हैं। और ईश्वर के झूठे खोजी होने में बड़ी सुगमता है-कुछ बदलना नहीं पड़ता
और बदलने का मजा आ जाता है, धार्मिक होना नहीं पड़ता और धार्मिक होने का रस और अहंकार।.. __कच्चे लोग वृक्षों से तोड़ लिये गये हैं-कच्चे फल, पके नहीं थे, पकने का मौका नहीं मिला था। मैं तुमसे कहता हूं, नास्तिक रहना अगर नास्तिकता अभी तुम्हारे लिए स्वाभाविक मालूम पड़ती हो, अभी आस्तिक होने की जरूरत नहीं, फिर अभी घड़ी नहीं आयी, जल्दी क्या है? अभी कच्चे हो, पको। जिस दिन नास्तिकता अपनी ही समझ से गिर जाए और जीवन में स्वीकार का भाव उठे, उसी दिन आस्तिक बनना, उसके पहले मत बन जाना।
नहीं तो झूठा आस्तिक सच्चे नास्तिक से बदतर हालत में हो जाता है। सच्चा नास्तिक कम से कम नास्तिक तो है, सच्चा तो है। कम से कम जो भी उसके भीतर है वही उसके बाहर तो है। अधिकतर लोग भीतर से नास्तिक हैं, बाहर से आस्तिक हैं। मंदिर में जाते हैं, सिर भी झका आते हैं, मस्जिद में नमाज भी पढ़ आते हैं, और भीतर न नमाज होती है, न सिर झुकता है, न प्रार्थना उठती है। भीतर तो वे जानते हैं-कहां रखा है परमात्मा इत्यादि; मगर ठीक है, औपचारिक है, कर लेने से लाभ रहता है, लोग देख लेते हैं धार्मिक हैं, दुकान अच्छी चलती है। लड़की की शादी करनी है, बेटे को नौकरी लगवानी है, अगर लोगों को पता चल जाए नास्तिक हो, तो लड़के को नौकरी न मिले, लड़की की शादी मुश्किल हो जाए।
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, आपकी बात बिलकुल जंचती है, लेकिन अभी लड़की की शादी करनी है, अभी बेटे को नौकरी लगवानी है, अभी जरा ठहरें! आपकी बात बिलकुल जंचती है, मगर जरा पहले हम निपट लें, नहीं तो झंझट होगी; असुविधा होगी खड़ी। आप जो कहते हैं, ठीक हमें मालूम पड़ता है; और जो हम मानते हैं, वह गलत मालूम पड़ने लगा है। लेकिन अभी हम छोड़ेंगे नहीं, अभी औपचारिकता निभा लेंगे। ऐसे लोग औपचारिक रूप से धार्मिक हैं; दिखावे के लिए धार्मिक हैं। यह एक तरह की सामाजिकता है, इसका कोई धर्म से संबंध नहीं है। - फिर ईश्वर की खोज पर कठिनाइयां हैं। सुगम नहीं है बात। पहाड़ की चढ़ाई है। घाटियों में उतरने जैसा नहीं है। जैसे एक पत्थर को लुढ़का दो चोटी पर से, तो फिर कुछ और नहीं करना पड़ता, एक दफे लुढ़का दिया तो खुद ही लुढ़कता हुआ घाटी तक पहुंच जाता है। लेकिन पत्थर को पहाड़ पर चढ़ाना हो तो लुढ़काने से काम नहीं चलता, खींचना पड़ता है। थक जाओगे, पसीने-पसीने हो जाओगे; जटिल है, दुरूह है, दुर्गम है, खतरनाक है। और जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ेगी वैसे-वैसे मुश्किल होता जाएगा। उतना ही बोझ कठिन होता जाएगा। आखिरी ऊंचाई पर पहुंचने वाले को बड़ा दुस्साहस चाहिए। ईश्वर की खोज कायरों का काम नहीं है। और अक्सर कायर ईश्वरवादी हैं। इसलिए ईश्वर की खोज नहीं हो पा रही है।
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