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________________ सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का मां बूढ़ी हो गयी, बिस्तर पर पड़ी है, अब उठ नहीं सकती है, बैठ नहीं सकती, अब मौत करीब है और अब तुम पाओगे कि वह जीवन को बड़े कसकर पकड़ रही है। शायद साधारण व्यक्ति से भी ज्यादा कसकर पकड़ेगी। क्योंकि पचास साल साधना में जितना जीवन गंवाया, वह भी बदला लेगा। पचास साल व्रत-उपवास किये, वह भी बदला लेगा। पचास साल तक तो कभी ठीक से भोगा नहीं, जब नाचना था तब मंदिर गये, जब भोगना था तब शास्त्र पढ़ा, वह जो पचास साल तक चूके, अब मौत सामने खड़ी है, अब यह मौत कंपा रही है, अब भरोसा नहीं आता कि इस मौत के पार कुछ भी है। अब संदेह पैदा होता है। संदेह होगा ही। मौत जीवन के आखिरी कोने को छू लेती है और डांवाडोल कर देती है, सब श्रद्धाएं और विश्वास ऊपर-ऊपर हैं, उखड़ जाते हैं, भीतर का संदेह सामने आ जाता है। अब डर लगता है कि कहीं मैंने जीवन व्यर्थ तो नहीं गंवा दिया। ___ एक बहुत बड़े साधु थे, महात्मा भगवानदीन। मरते समय मैं उनके पास मौजूद था। मैं चकित हुआ! मेरी तो तब कोई उम्र न थी, वे मरणासन्न थे, मैं उनके पास गया था, उनसे मेरा लगाव था। मरने के पहले बड़े खांसी का जोर से आक्रमण हुआ। दमे की बीमारी थी, हड्डी-हड्डी हो गये थे। जैसे ही आक्रमण खांसी का बंद हुआ, उन्होंने आंख खोली-आखिरी ज्योति, वह मैं देख सका उनकी आंख में, दीया आखिरी है, बुझता है, अब बुझा, तब बुझा-वह कुछ कहना चाहते हैं; तो मैं उनके पास सरक आया। मैंने कहा, आप कुछ कहना चाहते हों तो कह दें; कुछ करना हो, कोई बात हो, तो आप बात दें। उन्होंने कहा, इतना ही कहना है कि मेरा जीवन व्यर्थ गया। जो मैंने साधनाएं कीं और जो मैंने तपश्चर्याएं कीं, वे सब व्यर्थ गयीं। न कोई आत्मा है और न कोई परमात्मा है। ऐसा कहकर वे मर गये। बड़े दुखी मरे। बड़े परेशान मरे। जैन थे। और बड़ी उनकी प्रसिद्धि थी, महात्मा गांधी ने उनको महात्मा की उपाधि दी थी-महात्मा भगवानदीन। महात्मा गांधी ने किसी को कभी महात्मा नहीं कहा, सिवाय भगवानदीन के। ___ यह मामला क्या हुआ! अब मेरी कठिनाई यह है कि मेरे पास कोई गवाही भी नहीं है, क्योंकि मैं अकेला ही था वहां मौजूद। लेकिन उनका चित्र मेरे मन से कभी भूला नहीं। यह जीवनभर की पीड़ा उन्होंने कह दी। जीवनभर अपने को सताया था, सब तरह से सताया था, सब तरह से अपने को गलाया था, उस सबने बदला ले लिया है। मौत सामने खड़ी है, सब अस्तव्यस्त हो गया, सब बनाया हुआ घर गिर गया। वह मुझसे अपना आखिरी वक्तव्य कह गये। यह उनका टेस्टामेंट है। मगर यह टेस्टामेंट उनके संबंध में नहीं है, यह टेस्टामेंट उन्होंने जो जिंदगीभर अपने को सताने की प्रक्रिया की, उसके संबंध में है। ठीक वैसी ही दशा में ईश्वर भाई की मां होंगी। जीवेषणा के कारण ही हम सब साधनाएं करते रहते हैं। और असली साधना एक ही है, वह है-समझ। समझने 287
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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