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________________ सत्य अनुभव है अंतश्चक्षु का मार्क्स ने कहा है, जब तक ईश्वर प्रयोगशाला में परीक्षित न हो, तब तक स्वीकार नहीं होगा। जब हम टेस्ट ट्यूब में रखकर ईश्वर की परीक्षा कर लेंगे, एसिड डालकर और हजार तरह के उपाय करके, तब हम स्वीकार करेंगे। - जो तुम्हारे टेस्ट ट्यूब में समा जाएगा, वह ईश्वर होगा ! जो तुम्हारी टेबल पर लेट जाएगा और तुम उसके अंग-अंग खंडित करोगे, विश्लेषण करोगे, और तय करोगे कि कौन है, वह ईश्वर होगा ! नास्तिक यही तो कहता है कि मुझमें और तुममें इतना ही फर्क है - यह फर्क नहीं है कि ईश्वर है— फर्क इतना है कि मैं ईमानदार, मैं वही कहता हूं जो मुझे दिखायी पड़ता है, तुम उसकी बातें करते हो जो दिखायी नहीं पड़ता। तुम अदृश्य के संबंध में नाहक अटकलें लगाते हो । यही उस अंधे ने बुद्ध से कहा था। बुद्ध ने कहा कि मैं तेरी बात समझता हूं, मुझे तेरी बात में जरा भी विरोध नहीं है। लेकिन उन्होंने जो लोग उस अंधे को लेकर आए थे, उनसे कहा कि तुम्हारी बात गलत है, तुम इसे समझाने की कोशिश मत I मैं बड़े चिकित्सक को जानता हूं जो आंखें ठीक कर सकता है, तुम इसे चिकित्सक के पास ले जाओ । छह महीने की औषधि से उस आदमी की आंखों की जाली कट गयी। वह अंधा नहीं था— अंधा कोई भी नहीं है, सिर्फ आंखों पर जाली है— उसकी आंखों की जाली कट गयी। वह नाचता हुआ आया । वह बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। उसने कहा, अब मैं जानता हूं कि प्रकाश है और मुझे क्षमा कर दें, मैंने जो विवाद किया था वह व्यर्थ था, मुझे क्षमा कर दें। मैं अंधा था। सिर्फ अंधा था मैं और अपने अंधेपन को भी पकड़कर बैठा था । मैंने जो विवाद किया था वह ठीक नहीं था । प्रकाश है। और अब मैं जानता हूं कि मैं भी अगर किसी को चाहूं कि प्रकाश स्पर्श कर ले, स्वाद ले ले, ध्वनि सुन ले, गंध ले ले, तो मैं भी यह न कर पाऊंगा, और फिर भी प्रकाश है। प्रकाश का पता ही तब चलता है जब आंख खुलती है। प्रकाश आंख का अनुभव है, और सत्य तुम्हारी अंतर्दृष्टि का । प्रकाश बाहर की आंख का अनुभव है, सत्य तुम्हारी भीतर की आंख का । अंतश्चक्षु खुलें, तो सत्य का पता चलता है। तुम ऐसे प्रश्न मत पूछो कि सत्य क्या है ? ऐसा ही पूछो कि अंतश्चक्षु कैसे खुलें ? उसी की तो बात चल रही है रोज । हजार-हजार उपाय और विधियों से उसी की बात चल रही है कि अंतश्चक्षु कैसे खुलें ? ध्यान अंतश्चक्षु को खोलने की औषधि है । तुम ध्यान में लगो, तुम सत्य की व्यर्थ की बातों में मत पड़ो, अन्यथा दार्शनिक हो जाओगे । आस्तिक हो जाओगे, नास्तिक हो जाओगे, विवादी हो जाओगे, तार्किक हो जाओगे, पंडित हो जाओगे, लेकिन कभी ज्ञानी न हो सकोगे। ध्यान के अतिरिक्त कोई कभी ज्ञानी नहीं हुआ है। 283
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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