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________________ एस धम्मो सनंतनो चलता। और जिससे छीना-झपटी करनी पड़ी मौत को, उस पर बस चल जाता है। 'इस बात को समझकर पंडित और शीलवान पुरुष को निर्वाण की ओर जाने वाले मार्ग की खोज में और सफाई में तुरंत चल देना चाहिए।' एतमत्थवसं ञत्वा पंडितो सीलसंवुतो । निब्बान - गमनं मग्गं खिप्पमेव विसोधये ।। बुद्ध कहते हैं, अब तू जाता है एक लंबी यात्रा पर, अकेला रहेगा, अभी से बीज बो डाल इस बात के कि खोजने योग्य तो निर्वाण है, कि खोजने योग्य तो अपने भीतर का अंतस्तल है; कि खोजने योग्य तो एक ही बात है, वह बात है सब भांति . जीवन की वासना से मुक्त हो जाना, सब तृष्णा से मुक्त हो जाना। इस बात को समझकर पंडित और शीलवान पुरुष को निर्वाण की ओर जाने वाले मार्ग की खोज में लग जाना चाहिए और तुरंत अपने भीतर सफाई करने लगना चाहिए, ताकि उस मार्ग के संबंध में समझ गहरी हो सके। मार्ग तो है, लेकिन हमारे मन साफ-सुथरे नहीं हैं, इसलिए दिखायी नहीं पड़ता। खिप्पमेव विसोधये । उसका विसोधन करना होगा, खोजना होगा, साफ-सुथरा करना होगा। शायद जन्मों-जन्मों की तृष्णा के कारण रास्ता टूट-फूट गया है। शायद जन्मों-जन्मों की वासना के कारण कूड़ा-करकट से रास्ता दब गया है। शायद जन्मों-जन्मों से तुम उस अपने भीतर के मार्ग पर गए नहीं, अवरुद्ध हो गया है, झाड़-झंखाड़ ऊग गए हैं, उस रास्ते को साफ करना चाहिए। I ध्यान उस रास्ते को साफ करने की विधि है । और जब रास्ता साफ हो जाता है और तुम ध्यान के मार्ग से अपने भीतर अपने आखिरी केंद्र पर पहुंच जाते हो जिसके पार कुछ भी नहीं है, तो समाधि | ध्यान है मार्ग, समाधि है मंजिल । मृत्यु को देखकर व्यक्ति को ध्यान में लग जाना चाहिए और समाधि को पाने की एक ही अभीप्सा बचे; सब उस पर दांव लगा देना चाहिए। धन्यभागी हैं वे, जो ध्यान की दिशा में चल पड़े, जो ध्यान की दिशा में उन्मुख हो गए ! और उनके भाग्य का तो कहना क्या, जो समाधि को उपलब्ध हो जाते हैं ! सूत्र तुमसे कहे गए हैं। ये सूत्र एक-एक तुमसे ही कहे गए हैं! यह संदर्भ तुम्हारा संदर्भ है। खयाल रखना, ऐसी घटना घटी या नहीं घटी, इसका कोई मूल्य नहीं है । मेरा इतिहास में कोई रस नहीं है। ऐसी घटना घटी या नहीं घटी, कुछ पागल इसी में लगे रहते हैं। इसी फिक्र में लगे रहते हैं कि सच में ऐसा हुआ कि एक युवक 272
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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