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________________ अकेला होना नियति है था। उस रात मैं घर से भाग गया था। क्योंकि जब मरना ही है, तो फिर क्या युवक-महोत्सव! फिर क्या राग-रंग! वहां नगर के सारे युवक और युवतियां इकट्ठे हुए थे, वह वर्ष का युवकों का उत्सव था, उस दिन रातभर पीना-पिलाना चलता था, नाच-गान चलता था, वह लौट आए थे। वह उसी दिन बूढ़े हो गए। उसी दिन मौत हो गयी। तो बुद्ध ने कहा, मैं तो तोड़ चुका इस कमल को, बहुत सुंदर था, लेकिन मजबूत नहीं है। जरा हिम्मत हो तो टूट जाता है। और जब मौत पास खड़ी हो-और तेरे तो इतने पास खड़ी है, युवक! मैंने तो दूसरे की मौत में अपनी मौत देखी थी, तेरी मौत तो बिलकुल पास खड़ी है, तेरी ही मौत खड़ी है-तू तोड़ डाल इस आत्ममोह को! तू भी ठीक से गया हुआ हो जा! तू भी ऐसा जा कि फिर न लौटे! ___ 'यहां वर्षा ऋतु में बसूंगा, यहां हेमंत में बनूंगा, यहां ग्रीष्म में बसूंगा, मूर्ख इस प्रकार सोचता रहता है। किंतु वह जीवन के अंतराय (विघ्न) को नहीं बूझता है।' इध वस्सं वसिस्सामि इध हेमंत गिम्हसु। इति बालो विचिंतेति अंतरायं न बुज्झति।। पागल हैं, मूढ़ हैं वे, जो सोचते हैं, ऐसा भवन बनाएंगे; वसंत में इस भवन में रहेंगे, हेमंत में इस भवन में रहेंगे; ग्रीष्मकाल यहां बिताएंगे, शीतकाल वहां बिताएंगे, वर्षा वहां रहेंगे; मूढ़ हैं वे लोग जो समय की इस रेत पर भवन बनाने की सोचते हैं। इस समय की रेत पर कोई भवन कभी बन नहीं पाता, सब भवन गिर जाते हैं। और उन्हें बनाने में जीवन व्यर्थ चला जाता है। जिस जीवन से कुछ सार्थक मिल सकता था, वह जीवन ऐसे ही खो जाता है। नकार होकर खो जाता है। शून्य मात्र होकर रह जाता है। संपदा बिना पाए लोग मर जाते हैं। और संपदा एक ही है-सुगत हो जाना। मौत खड़ी है अंतराय बनकर, मौत तुम्हारी किसी योजना को पूरी न होने देगी। अंतराय शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है, जैनों और बौद्धों दोनों ने इस शब्द का उपयोग किया है। अंतराय का अर्थ होता है, जो बीच में खड़ा है। जो तुम्हारी किसी योजना को पूरी न होने देगा। तुम धन कमाओ, पहले तो कमाने न देगा, अगर किसी तरह कमा लिया तो भोगने न देगा। कोई उपाय नहीं है धन के द्वारा सुख पाने का; नहीं मिले तो दुख और मिल जाए तो दुख। मृत्यु सबसे बड़ा अंतराय है। वह हर जगह खड़ा है। तुम कुछ भी करो, वह सभी चीजों को मटियामेट कर देता है। मूढ़ हैं वे, जो जीवन में खड़े अंतराय को नहीं देखते हैं। ___ 'सोए गांव को जिस तरह बढ़ी हुई बाढ़ बहा ले जाती है, उसी तरह पुत्र और पशु में लिप्त पुरुष को मृत्यु ले जाती है।' 269
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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