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________________ एस धम्मो सनंतनो एक झटके में टूट जाता है। ऐसा ही बुद्ध कहते हैं, जो आदमी के जीवन में वासना का सूत्र है, वह बड़ा कोमल है, सुंदर है, प्यारा है, मगर एक झटके में टूट जाता है। झटका देने की हिम्मत होनी चाहिए। और मौत जब पास खड़ी हो तो झटका देना आसान होता है। मौत जब पास खड़ी हो, तो झटका मौत ही दे रही है, तुम जरा मौत का सहारा ले लो, तो यह कामवासना का सुंदर कमल मुर्झा जाए। 'शरद ऋतु के कुमुद को जिस तरह मनुष्य हाथ से सहज काट देता है, उसी तरह आत्मस्नेह को काट डाल।' . अब यह सोचना, यह कामवासना के कारण ही हम अपने प्रेम में पड़े हैं। अपने प्रेम में हम इसीलिए पड़े हैं कि दूसरे से प्रेम में पड़े हैं। और जब तक हमारा दूसरे से प्रेम भरा नहीं, पूरा नहीं हुआ, हम जागे नहीं, तब तक अपने से प्रेम जारी रहता है। स्वार्थ की सारी यात्रा दूसरे को भोगने की यात्रा है । और बुद्ध कहते हैं— उच्छिंद सिनेहमत्तनो - यह जो स्वयं की अत्ता से, अहंकार से, मैं, इससे जो बहुत तेरा प्रेम है, इसको उखाड़ डाल। इस अहंकार से जो तेरा तादात्म्य है, इसको उखाड़ डाल । मौत करीब आ रही है। अगर मौत के पहले तूने अपने अहंकार को उखाड़ डाला और अपने प्रति सारा प्रेम छोड़ दिया, तो फिर तेरा कोई जन्म न होगा। जन्म होता है अपने प्रति आसक्ति के कारण । 'सुगत द्वारा उपदिष्ट निर्वाण के शांतिमार्ग को बढ़ाता जा ।' उठा कदम एक-एक! लंबी यात्रा है। लेकिन सुगत द्वारा उपदिष्ट मार्ग... सुगत बुद्ध का एक नाम है। बुद्ध को जो नाम हमने दिए हैं वे सब बड़े अपूर्व हैं। उनका एक-एक का अर्थ है । सुगत का अर्थ होता है, जो ठीक से गए । गत — गए, सुगत — ठीक से गए। जो इस तरह ठीक से गए कि फिर नहीं आए; जो दुबारा नहीं आए, उनको हम सुगत कहते हैं। जो इस संसार में दुबारा नहीं आते। जो ऐसे चले जाते हैं कि फिर आने का कोई उपाय नहीं रह जाता। जो अपने पीछे कोई सूत्र नहीं छोड़ जाते। जिनकी कोई भी जड़ नहीं बचती । जो गए सो गए। सुगत प्यारा शब्द है। जो सुगत हो गया, वह निर्वाण को उपलब्ध हो गया । यह बुद्ध का एक नाम है। बुद्ध कहते हैं, 'सुगत के द्वारा उपदिष्ट निर्वाण के शांतिमार्ग को बढ़ाता जा ।' बुद्ध कहते हैं, मैं तो चला ही गया, इसलिए मैं तुझे सजग करता हूं, जगाता हूं। मैंने यह कमल आत्ममोह का तोड़ डाला एक झटके से । और मैंने भी जब तोड़ा था तो मौत ही मेरे सामने खड़ी हुई थी। मेरी भी मौत न थी वह, किसी दूसरे को मरा हुआ देखा था और मेरे मन में प्रश्न उठा था कि क्या सभी को मर जाना होगा, यह आदमी मर गया ! और मेरे सारथि ने कहा था, हां, प्रभुः सभी को मर जाना होगा। मैंने पूछा था, क्या मैं भी मर जाऊंगा ? और मेरे सारथि ने कहा था, कैसे कहूं, किस मुंह से कहूं, लेकिन झूठ तो बोल भी नहीं सकता, आपको भी मर जाना होगा। तब मैंने अपने रथ को, जो युवक महोत्सव में भाग लेने जा रहा था, वापस लौटा लिया 268
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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