________________
एस धम्मो सनंतनो
स्त्रियां गयीं, सीधी गयीं, कोई बीच में लौटकर आने की जरूरत नहीं पड़ी।
लेकिन जैन-मार्ग से कभी कोई स्त्री सीधी नहीं गयी, यह बात सच है। और मार्ग हैं जिनसे गयी।
और बुद्ध ने तो बहुत दिन तक स्त्रियों को दीक्षा ही नहीं दी थी। बहुत मुश्किल से दीक्षा दी। बड़ा विरोध किया बुद्ध ने कि नहीं, दीक्षा नहीं दूंगा स्त्रियों को। लेकिन फिर दबाव बहुत बढ़ने लगा, आखिर स्त्रियों को भी तो लगा कि इतने लोग, इतने पुरुष संन्यस्त हो रहे हैं, भिक्षु हो रहे हैं, ध्यान में जा रहे हैं, परम शांति को पा रहे हैं, स्त्रियों ने भी आखिर दबाव डाला।
बुद्ध की मां तो बचपन में मर गयी थी, पैदा होते ही से मर गयी थी. तो बद्ध को पाला था उनकी सौतेली मां ने-प्रजापति ने। आखिर स्त्रियों ने प्रजापति को समझाया-बुझाया और कहा कि तुम चलो, तुम्हारी तो मानेगा। तो प्रजापति को लेकर स्त्रियां आयीं और प्रजापति ने प्रार्थना की, तो भी बुद्ध ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, मैं स्त्रियों को दीक्षा नहीं दंगा।
यह बात जरा ज्यादा हो गयी। तो बुद्ध के भिक्षुओं ने भी खड़े होकर प्रार्थना की, विशेषकर आनंद ने जो उनका प्रिय शिष्य था, उसने कहा कि नहीं प्रभो, अब यह ज्यादती हो रही है, आखिर स्त्रियों का क्या कसूर है! आखिर उनको भी तो परमात्मा चाहिए, उनको भी तो मोक्ष चाहिए, उनको भी तो शांति चाहिए, आप दया करें। जब बहुत दबाव डाला तो बुद्ध ने कहा-ठीक, मैं स्त्रियों को दीक्षा देता हूं, लेकिन मैं तुमसे कहे देता हूं, स्त्रियों के बिना मेरा धर्म पांच हजार साल चलता, अब केवल पांच सौ साल चलेगा।
यह भी खूब मजे की बात कही! मगर इसमें कारण हैं। बुद्ध की मौलिक शिक्षा पुरुष-चित्त के लिए है। पुरुष-चित्त हृदय की तरफ मुश्किल से डोलता है, बुद्धि की तरफ आसानी से डोलता है। स्त्री-चित्त हृदय की तरफ आसानी से डोलता है, बुद्धि की तरफ जरा कठिनाई से डोलता है। - तो बुद्ध ने ठीक ही कहा कि पांच सौ साल चलेगा मेरा धर्म-और पांच सौ साल भी नहीं चला, जल्दी ही नष्ट-भ्रष्ट हो गया। क्योंकि जहां स्त्री आयी, प्रेम आया। जहां स्त्री आयी, मस्ती आयी। जहां स्त्री आयी, गुनगुनाहट आयी, नाच आया, चूंघर आए। वे बिचारे बुद्ध के भिक्षु जल्दी ही दिक्कत में पड़ गए। वे अड़चन में पड़ गए। वे दयनीय सिद्ध हुए।
पर मेरी स्थिति भिन्न है। मेरे लिए दोनों मार्ग एक जैसे हैं। इसलिए यहां स्त्री आए कि पुरुष आए, बराबर। और मैं कहता हूं, दोनों मोक्ष जा सकते हैं, जो जहां है वहीं से जा सकता है। यह मैं इसीलिए कह सकता हूं, कि मेरा किसी एक मार्ग पर कोई आग्रह नहीं है। मैं मार्ग को मूल्य ही नहीं देता, मेरा मूल्य तुम्हारे ऊपर है। मैं तुम्हें देखकर मार्ग तय करता हूं।
244