________________
एस धम्मो सनंतनो
थे; जहां बैठे-बैठे सिवाय परेशान होते थे और कुछ समझ में न पड़ता था। और हर कोई दबा देता था, बल भी नहीं था। हर एक छाती पर सवार था।
तो बचपन में सुख कैसा था ? न धन था, न पद था, न प्रतिष्ठा थी; न कोई सम्मान देता था, सुख हो कैसे सकता था ? सुख कुछ और था । तितलियों के पीछे भागने में ध्यान की किरण उतर आयी थी । सागर के किनारे शंख - सीप बीनने में परम आनंद का क्षण उतरा था। कंकड़-पत्थर बीन लाए थे और समझे थे कि हीरे ले आए, और किस चाल से मस्त होकर आए थे ! कुछ भी न था हाथ में, लेकिन कुछ ध्यान की सुविधा थी ।
मेरे देखे बचपन में ध्यान के अतिरिक्त और कोई सुख नहीं है। तुम भूल गए हो, तुम्हें इतना ही भर याद रही है कि बड़ा सुख था । अगर तुमसे कोई पूछे कि बताओ क्या-क्या सुख था, तो तुम मुश्किल में पड़ोगे । और ध्यान की तो तुम्हें याद ही नहीं है, ध्यान शब्द ही अपरिचित हो गया है। बच्चे को ऐसा पता भी नहीं था कि यह ध्यान है। पर पता होने से क्या होता है ! तुम्हें पता हो कि सोना है या नहीं है, इससे क्या होता है ? सोना सोना है।
जैसे-जैसे तुम बड़े होते गए वैसे-वैसे ध्यान छूटता गया, क्योंकि तुम विचारों में ज्यादा पड़ते गए । विचार का शिक्षण दिया गया। स्कूल, कालेज, युनिवर्सिटी, सब विचार सिखाते हैं। अभी तक मनुष्य जाति का ऐसा अभागापन है कि कोई विश्वविद्यालय ध्यान नहीं सिखाता ! विचार । धीरे-धीरे तुम विचार से भरते गए, भरते गए। चिंताएं, चिंताएं, तुम चूक ही गए वे छोटे-छोटे क्षण जब पर्दा हट जाता था— अपने से हट जाता था।
तुमने देखा, बच्चे कैसे प्रमुदित मालूम होते हैं ! छोटे-छोटे बच्चे, जिनके पास कुछ भी नहीं है! कोई कारण नहीं है प्रसन्न होने का, अकारण प्रसन्न हैं। वह अकारण प्रसन्नता ध्यान है। देखा, एक छोटा बच्चा अपने झूले में पड़ा है, कुछ नहीं है चूसने को, अंगूठा चूस रहा है, और कैसा प्रसन्न मालूम होता है ! ऐसा प्रसन्न मालूम होता है कि सिकंदर भी न रहा होगा प्रसन्न, अकबर और अशोक भी न रहे होंगे ऐसे प्रसन्न, बड़े से बड़े साम्राज्य के मालिक ऐसे प्रसन्न न रहे होंगे ! इसके पास कुछ भी नहीं है, या तो अपने हाथ का या पैर का अंगूठा डाले चूस रहा है। लेकिन कुछ घट रहा है। अभी पर्दा खुला ही है, अभी विचार उठते ही नहीं, अभी भीतर की बीन बज रही है।
यहूदियों में एक कथा है कि जब कोई बच्चा पैदा होता है, तो देवता आते हैं और उस बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हैं; ताकि वह भूल जाए उस सुख को जो सुख परमात्मा के घर उसने जाना था, नहीं तो जिंदगी बड़ी कठिन हो जाएगी - दयावश ऐसा करते हैं वे, नहीं तो जिंदगी बड़ी कठिन हो जाएगी। अगर वह सुख याद रहे, तो बड़ी कठिन हो जाएगी, तुलना में। तुम फिर कुछ भी करो, व्यर्थ मालूम पड़ेगा। धन कमाओ, पद कमाओ, सुंदर से सुंदर पत्नी और पति ले आओ, अच्छे से अच्छे
234