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________________ आचरण बोध की छाया है पहला प्रश्नः मैं जानता है कि क्या ठीक है, फिर भी उसे कर नहीं पाता है। और आप कहते हैं कि ज्ञान से ही, ज्ञानमात्र से ही आचरण बदल जाता है। यह बात मेरी समझ में नहीं आती! नहीं भाई, जानते होते तो बदलाहट होती ही! कोई जाने और बदलाहट न हो, ऐसा होता ही नहीं। जानने में कहीं भ्रांति हो रही होगी। बिना जाने सोचते होओगे कि जान लिया। सुनकर जान लिया होगा, पढ़कर जान लिया होगा, जाना नहीं है। स्वयं का अनुभव नहीं है। ज्ञान तो वही जो स्वयं के अनुभव से निकले। और सब शेष तो अज्ञान को छिपाने के ढंग हैं। ज्ञान तो वही जो स्वयं के जीवन की सुगंध की तरह आए। जीवन के अनुभवों का निचोड़ है ज्ञान। जैसे बहुत फूलों को निचोड़कर इत्र बनता है, ऐसे जीवन के बहुत अनुभवों को निचोड़कर ज्ञान बनता है। एक ज्ञान के कण में हजारों अनुभवों का निचोड़ होता है। यह बात उधार नहीं हो सकती। यह इत्र ऐसा नहीं है कि तुम बाजार से खरीद सको। शास्त्र से न मिलेगा, जीवन में ही संघर्ष से, जीवन में ही इंच-इंच चलकर, जीकर ही मिलेगा। जीए बिना ज्ञान नहीं मिलता। 217
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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