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________________ एस धम्मो सनंतनो और फिर यह भी सोचो कि किसी का नाम भी छूट गया-समझो कि सिकंदर का नाम छूट गया तो सार क्या है? नाम में सार क्या है ? नाम छूट भी जाए तो क्या सार है? क्या फायदा सिकंदर को? इस नाम के छूट जाने से कौन सा आनंद सिकंदर को? सिकंदर न बचा, और नाम बच भी गया तो क्या करोगे? जब स्वयं ही न बचे, तो स्वयं की तस्वीरें अगर टंगी भी रह गयीं, तो उनका मूल्य क्या है? किसको मूल्य है? किसको प्रयोजन है? बुद्ध कहते हैं, अगर ध्यान में वस्तुतः गहरे उतरना हो तो पहली बात प्रगाढ़ कर लेना, यह पहला भाव तुम्हारी हवा बन जाए सब्बे संखारा अनिच्चाति। सब संसार अनित्य है। सब, बेशर्त, निरपवाद क्षणभंगुर है। अभी है, अभी चला जाएगा। तो इसमें पकड़ने योग्य कुछ भी नहीं है। साक्षी बनकर भीतर बैठना। संसार में पकड़ने योग्य कुछ नहीं है। आंख बंद जब करोगे तो विचारों का संसार दिखायी पड़ेगा, इसमें तो पकड़ने योग्य कुछ हो भी कैसे सकता है। आएं बुरे विचार, जाएं बुरे विचार, आएं भले विचार, जाएं भले विचार, आने देना, जाने देना, तुम परेशान ही मत होना, तुम चिंता ही मत लेना। तब तुम चकित होकर पाओगे, यह जो अनित्य भावना है, इसके आधार पर ध्यान की जड़ें मजबूत हो जाती हैं। ध्यान पैदा होता है अनित्य की धारणा में। इसलिए सारे ज्ञानियों ने, संसार अनित्य है, इस पर बहुत जोर दिया है। और बुद्ध का जोर तो अतिशय है। बुद्ध ने तो जोर पूरे अंतिम तर्क तक पहुंचा दिया है। बुद्ध ने यही नहीं कहा कि संसार अनित्य है, बुद्ध ने कहा, तुम भी अनित्य हो। क्योंकि बहुत से लोग हैं, जिन्होंने कहा, संसार अनित्य है। लेकिन तुमसे कहा, तुम, तुम बचोगे। आत्मा बचेगी। बुद्ध ने कहा, यहां कुछ भी नहीं बचेगा। न यह बाहर का बचेगा, न कुछ भीतर का बचेगा, यहां कुछ बचता ही नहीं है। इसे समझने की कोशिश करना। यहां बचना होता ही नहीं है। यहां बहाव ही बहाव है। यहां सब बह रहा है। तुम भी बह रहे, संसार भी बह रहा है। इस बहाव के बीच ठहरने की कोई जगह ही नहीं है, कोई शरण-स्थल नहीं है। इस बात की प्रज्ञा सब्बे संखारा अनिच्चाति यदा पञ्चाय पस्सति। इस बात का तुम्हें दर्शन हो जाए, इसका बोध हो जाए, तो ध्यान लगेगा। 'तब सभी दुखों से निर्वेद प्राप्त हो जाता है, यही विशुद्धि का मार्ग है।' 202
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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