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________________ जुहो! जुहो! जुहो! एकाध गाय अपनी हो कि पुष्टि दे। बुद्ध ने बहुत अच्छे वचन कहे, लेकिन क्या काम पड़ेंगे? एकाध किरण बुद्धत्व की अपने में हो-एकाध गाय अपनी हो। मोहम्मद ने अदभुत वचन कहे, लेकिन क्या करोगे? याद कर लोगे, कंठस्थ कर लोगे, तोतों की तरह दोहराने लगोगे। अब तो तोते भी बिगड़ गए हैं। कल मैं एक कहानी पढ़ रहा था। एक आदमी ने एक पिंजड़ा टांग रखा था और उसमें तीन तोते थे। एक ऊंचे पद पर बैठा था, दो उसके आसपास बैठे थे। किसी पड़ोसी ने पूछा कि भई, बात क्या है? तीन तोते! तो उन्होंने कहा, दो सेक्रेटरी हैं। ये बताते हैं कि क्या बोलना। यह जो ऊपर बैठा है, यह समझो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति। ये दो तोते याद करते हैं और जब बोलना होता है तो इसको बता देते हैं, तब यह बोल देता है। ____ एक तो तोतापन ही उधार, फिर उसमें भी सेक्रेटरी! एक तो बुद्ध के वचन उधार और फिर उसमें भी यह बीच में पंडितों की बड़ी कतार! वे तुम्हें बताते हैं कि वेद का क्या अर्थ है। जिन्हें स्वयं पता नहीं कि वेद का क्या अर्थ, वे तुम्हें बताते हैं वेद का क्या अर्थ। फिर उनकी भी कोई एक-दो नहीं, बड़ी श्रृंखला है, जंगल का जंगल है, उसमें तुम भटक जाओगे। यह उधार ज्ञान काम नहीं आता, अपना हो तो ही काम आता है। अब तुम पूछते हो कि क्या लाभ? मेरे देखे तो इतना ही लाभ हो सकता है-अगर तुम्हें अंधा होना हो तो शास्त्र, अगर तुम्हें बहरा होना हो तो शास्त्र, लूला-लंगड़ा होना हो तो शास्त्र, अपाहिज-अपंग होना हो तो शास्त्र। इस तरह के लाभ हैं। खलील जिब्रान की एक छोटी सी कहानी__ मैंने सुन रखा था कि कहीं एक ऐसी नगरी भी है जिसके वासी ईश्वरीय पुस्तकों के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। मैं उस नगर में पहुंचा। मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस नगर के समस्त वासियों के केवल एक-एक हाथ और एक-एक आंख है और एक-एक पैर है। बड़ी दुर्दशा थी। यह दुर्दशा किसने की? मैंने आश्चर्य से भरकर उनसे पूछा, आपकी यह दशा क्यों कर हुई? आप सबके कोई भी पूरे अंग नहीं हैं। आपकी आंखों का क्या हुआ? एक-एक आंख कहां गयी? आपके हाथों का क्या हुआ? आपके पैर किसने काट डाले? वे सब मुझे दो आंखों वाला देखकर आश्चर्य-चकित थे, जैसा मैं उन्हें देखकर आश्चर्य-चकित था। फिर भी उन्होंने मुझे अपने साथ आने का संकेत दिया। उनमें से अनेक की तो जबानें भी कटी थीं, वे बोल भी नहीं सकते थे। उनके साथ मैं एक मंदिर में गया। उस मंदिर के आंगन में हाथों, पांवों, आंखों और जीभों का एक विशाल ढेर लगा था। मैं दुखी हुआ और मैंने पूछा, किस निर्दय 171
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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