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________________ जुहो! जुहो! जुहो! उसका अहंकार, उसकी अस्मिता, उसके पैदा होने के जो मौलिक कारण हैं, वे सब समाप्त हो जाते हैं। फिर वह दुबारा नहीं लौटता। तो यहां तो जो भी लौटे हैं, दुखी ही हैं। दुखी हैं, इसीलिए लौटे हैं। लौटे हैं, इसलिए पक्का है कि दुखी हैं, चेहरे कुछ भी कहें, मत फिकर करना। यहां दुखी ही लौटता है। __तो बुद्ध ने कहा, दुख है। अस्तित्व दुख से ग्रस्त है। समाज और मन तो छोटी-छोटी बातें हैं, ये तो संकीर्ण उपयोग हैं, बुद्ध ने पूरे अस्तित्व को कहा कि दुख है। फिर इस दुख के कारण हैं। इस दुख का कारण बुद्ध ने कहाः तृष्णा, वासना, और की दौड़-और मिल जाए, और मिल जाए, और ज्यादा पा लूं। इस कारण लोग दुखी हैं। जितनी और की दौड़, उतने ही ज्यादा दुखी। यह कारण है, तृष्णा कारण है। और उपाय-तृष्णा से मुक्ति। तृष्णा का छोड़ देना। तृष्णा को समझ लेना और तृष्णा को विसर्जित कर देना। देख लेना वासना को और फिर वासना से छूट जाना, अर्थात ध्यान। वृत्ति उठे, वासना उठे, विचार उठे और तुम अडिग अपने भीतर बने रहो, जरा भी डांवाडोल न हो। तुम कहो कि उठते रहो अंधड़, उठते रहो तूफान, मेरे केंद्र से तुम मुझे च्युत न कर सकोगे। धीरे-धीरे यह अंधड़ और तूफान फिर नहीं उठते। फिर तुम्हें कोई नहीं पुकारता, फिर तुम अपने भीतर ठहर जाते, प्रतिष्ठा हो जाती-स्व-प्रतिष्ठा हो जाती, स्व-स्थित हो जाते, स्वास्थ्य को उपलब्ध हो जाते। . और चौथी स्थिति-निर्वाण। जहां महासुख है। तुम तो नहीं बचोगे, सुख ही सुख बचेगा। तुम तो जब तक बचोगे तब तक थोड़ा दुख बचेगा। अहंकार का भाव ही दुख की गांठ है। कैंसर की गांठ समझो। तुम तो न बचोगे, सुख का सागर बचेगा। उस सुख के सागर को चौथी दशा कहा। पूछते हो तुम, 'क्या बुद्ध के चार आर्य-सत्य वैज्ञानिक हैं?' मैंने इससे बड़ी कोई और वैज्ञानिक बात देखी नहीं। बुद्ध ने ठीक मनुष्य के अंतस्तल के संबंध में वही किया जो चिकित्सक मनुष्य की बीमारी के संबंध में करता . है। जो मार्क्स ने समाज के लिए किया, फ्रायड ने मन के लिए किया, बुद्ध ने समस्त जीवन के लिए, समस्त अस्तित्व के लिए किया है। एक किसान ने एक बार भगवान बुद्ध से शिकायत की कि मैं खेत में श्रम करता, हल चलाता, बीज बोता हूं और तब मुझे खाने को मिल पाता है। क्या यह बेहतर न होता कि आप भी बीज बोते, हल चलाते और तब खाते? बड़ी अनूठी बात किसान ने पूछी बुद्ध से। बुद्ध ने कहा, ओ ब्राह्मण, मैं भी हल चलाता हूं, बीज बोता हूं, फसल काटता हूं, तभी खाता हूं! किसान ने हैरान होकर कहा, अगर तुम किसान हो तो तुम्हारे खेती के उपकरण कहां हैं? कहां हैं तुम्हारे बैल? बीज कहां हैं? कहां हैं हल? बुद्ध ने कहा, विश्वास मेरा बीज है जिसे मैं बोता हूं। भक्ति है वर्षा जो उसे अंकुरित करती है। विनय है मेरा बक्खर। मन है बैलों को बांधने की रस्सी, और 169
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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