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________________ धर्म तुम हो मान लो। वे ऐसा नहीं कहते हैं कि मैं कहता है, इसलिए मान लो। वे कहते हैं, जब तक तुम न जान लो, मानना मत। उधार श्रद्धा दो कौड़ी की है। विश्वास मत करना, खोजना। अपने जीवन को खोज में लगाना, मानने में जरा भी शक्ति व्यय मत करना। अन्यथा मानने में ही फांसी लग जाएगी। मान-मानकर ही लोग भटक गए हैं। तो बुद्ध न तो परंपरा की दुहाई देते, न वेद की। न वे कहते हैं कि हम जो कहते हैं, वह ठीक होना ही चाहिए। वे इतना ही कहते हैं, ऐसा मैंने देखा। इसे मानने की जरूरत नहीं है। इसको अगर परिकल्पना की तरह ही स्वीकार कर लो, तो काफी है। __परिकल्पना का अर्थ होता है, हाइपोथीसिस। जैसे कि मैंने तुमसे कहा कि भीतर आओ, भवन में दीया जल रहा है। तो मैं तुमसे कहता हूं कि यह मानने की जरूरत नहीं है कि भवन में दीया जल रहा है। इसको विश्वास करने की जरूरत नहीं। इस पर किसी तरह की श्रद्धा लाने की जरूरत नहीं है। तुम मेरे साथ आओ और दीए को जलता देख लो। दीया जल रहा है तो तुम मानो या न मानो, दीया जल रहा है। और दीया जल रहा है तो तुम मानते हुए आओ कि न मानते हुए आओ, दीया जलता ही रहेगा। तुम्हारे न मानने से दीया बुझेगा नहीं, तुम्हारे मानने से जलेगा नहीं। इसलिए बुद्ध कहते हैं, तुम सिर्फ मेरा निमंत्रण स्वीकार करो। इस भवन में दीया जला है, तुम भीतर आओ। और यह भवन तुम्हारा ही है, यह तुम्हारी ही अंतरात्मा का भवन है। तुम भीतर आओ और दीए को जलता देख लो। देख लो, फिर मानना। और खयाल रहे, जब देख ही लिया तो मानने की कोई जरूरत नहीं रह जाती है। हम जो देख लेते हैं, उसे थोड़े ही मानते हैं। हम तो जो नहीं देखते, उसी को मानते हैं। तुम पत्थर-पहाड़ को तो नहीं मानते, परमात्मा को मानते हो। तुम सूरज-चांद-तारों को तो नहीं मानते, वे तो हैं। तुम स्वर्गलोक, मोक्ष, नर्क को मानते हो। जो नहीं दिखायी पड़ता, उसको हम मानते हैं। जो दिखायी पड़ता है, उसको तो मानने की जरूरत ही नहीं रह जाती है, उसका यथार्थ तो प्रगट है। __तो बुद्ध कहते हैं, मेरी बात पर भरोसा लाने की जरूरत नहीं, इतना ही काफी है कि तुम मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लो। इतना पर्याप्त है। इसको वैज्ञानिक कहते हैं, हाइपोथीसिस, परिकल्पना। एक वैज्ञानिक कहता है, सौ डिग्री तक पानी गर्म करने से पानी भाप बन जाता है। मानने की कोई जरूरत नहीं, चूल्हा तुम्हारे घर में है, जल उपलब्ध है, आग उपलब्ध है, चढ़ा दो चूल्हे पर जल को, परीक्षण कर लो। परीक्षण करने के लिए जो बात मानी गयी है. वह परिकल्पना। अभी स्वीकार नहीं कर ली है कि यह सत्य है, लेकिन एक आदमी कहता है, शायद सत्य हो, शायद असत्य हो, प्रयोग करके देख लें, प्रयोग ही सिद्ध करेगा-सत्य है या नहीं? ___ तो बुद्ध पारंपरिक नहीं हैं, मौलिक हैं। विचार की परंपरा होती है, दृष्टि की मौलिकता होती है। विचार अतीत के होते हैं, दृष्टि वर्तमान में होती है। विचार दूसरों के होते हैं, दृष्टि अपनी होती है।
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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