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एस धम्मो सनंतनो
गौ त म बुद्ध के संबंध में सात बातें।
-पहली, गौतम बुद्ध दार्शनिक नहीं, द्रष्टा हैं। दार्शनिक वह, जो सोचे। द्रष्टा वह, जो देखे। सोचने से दृष्टि नहीं मिलती। सोचना अज्ञात का हो भी नहीं सकता। जो ज्ञात नहीं है, उसे हम सोचेंगे भी कैसे? सोचना तो ज्ञात के भीतर ही परिभ्रमण है। सोचना तो ज्ञात की ही धूल में लोटना है। सत्य अज्ञात है। ऐसे ही अज्ञात है जैसे अंधे को प्रकाश अज्ञात है। अंधा लाख सोचे, लाख सिर मारे, तो भी प्रकाश के संबंध में सोचकर क्या जान पाएगा! आंख की चिकित्सा होनी चाहिए। आंख खुलनी चाहिए। अंधा जब तक द्रष्टा न बने, तब तक सार हाथ नहीं लगेगा। __ तो पहली बात,बुद्ध के संबंध में स्मरण रखना, उनका जोर द्रष्टा बनने पर है। वे स्वयं द्रष्टा हैं। और वे नहीं चाहते कि लोग दर्शन के ऊहापोह में उलझें।
दार्शनिक ऊहापोह के कारण ही करोड़ों लोग दृष्टि को उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। प्रकाश की मुफ्त धारणाएं मिल जाएं, तो आंख का महंगा इलाज कौन करे! सस्ते में सिद्धांत मिल जाएं, तो सत्य को कौन खोजे! मुफ्त, उधार सब उपलब्ध हो, तो
आंख की चिकित्सा की पीड़ा से कौन गुजरे! और चिकित्सा कठिन है। और चिकित्सा में पीड़ा भी है। . बुद्ध ने बार-बार कहा है कि मैं चिकित्सक हूं। उनके सूत्रों को समझने में इसे याद रखना। बुद्ध किसी सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं कर रहे हैं। वे किसी दर्शन को सूत्रपात नहीं कर रहे हैं। वे केवल उन लोगों को बुला रहे हैं जो अंधे हैं और जिनके भीतर प्रकाश को देखने की प्यास है। और जब लोग बुद्ध के पास गए, तो बुद्ध ने उन्हें कुछ शब्द नहीं पकड़ाए, बुद्ध ने उन्हें ध्यान की तरफ इंगित और इशारा किया। क्योंकि ध्यान से खुलती है आंख, ध्यान से खुलती है भीतर की आंख।
विचारों से तो पर्त की पर्त तुम इकट्ठी कर लो, आंख खुली भी हो तो बंद हो जाएगी। विचारों के बोझ से आदमी की दृष्टि खो जाती है। जितने विचार के पक्षपात गहन हो जाते हैं, उतना ही देखना असंभव हो जाता है। फिर तुम वही देखने लगते हो जो तुम्हारी दृष्टि होती है। फिर तुम वह नहीं देखते, जो है। जो है, उसे देखना हो तो सब दृष्टियों से मुक्त हो जाना जरूरी है। ___इस विरोधाभास को खयाल में लेना, दृष्टि पाने के लिए सब दृष्टियों से मुक्त हो जाना जरूरी है। जिसकी कोई भी दृष्टि नहीं, जिसका कोई दर्शनशास्त्र नहीं, वही सत्य को देखने में समर्थ हो पाता है।
दूसरी बात, गौतम बुद्ध पारंपरिक नहीं, मौलिक हैं। गौतम बुद्ध किसी परंपरा, किसी लीक को नहीं पीटते हैं। वे ऐसा नहीं कहते हैं कि अतीत के ऋषियों ने ऐसा कहा था, इसलिए मान लो। वे ऐसा नहीं कहते हैं कि वेद में ऐसा लिखा है, इसलिए