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________________ सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में सुनी, तुम प्रभावित हो गए। तुमने छोड़ दिया, लेकिन तुम्हें बात समझ में नहीं आयी थी। तुम्हारे जीवन में अभी प्रौढ़ता नहीं आयी थी। ___अभी और भटकना है ? बाह्यमार्गों में कैसा सौंदर्य! बाह्यमार्गों में कैसी छाया! बाह्यमार्गों पर कैसे सरोवर! बुद्ध की सारी चेष्टा, पूरे जीवन-कोई बयालीस वर्ष बोधि के बाद वे लोगों को समझाते रहे-अथक, सारा एक ही प्रयास कि किसी तरह लोग अपने भीतर आ जाएं; किसी तरह उन्हें स्वयं का दर्शन हो जाए। एक ही संदेश हजारों ढंग से दिया, एक ही बात हजारों ढंग से कही, सार तो इतना ही है कि अपने भीतर आ जाओ। इसलिए कोई भी अवसर चूके नहीं। कोई भी अवसर हो, उन्होंने उसको ही मौका बना लिया। यह अवसर था। भिक्षु बात कर रहे थे, उन्होंने इसको ही अवसर बना लिया। यही एक उपाय बन गया। __कहा कि बाहर के मार्गों में कैसा सौंदर्य। बाहर के तो सभी मार्ग कंटकाकीर्ण हैं। भिक्षु कुछ और कह रहे थे, बुद्ध ने उस कुछ को उपयोग कर लिया। कहा, बाहर के मार्गों में कैसा सौंदर्य! बाहर के तो सभी मार्ग असुंदर हैं, क्योंकि बाहर के सभी मार्ग अंततः नर्क में ले जाते हैं, दुख में ले जाते हैं। जो दुख में ले जाए, वह कैसे सुंदर! और बाहर के मार्गों में कैसी छाया! क्योंकि बुद्ध कहते हैं, मैंने तो बाहर के मार्गों पर चलते लोगों को सिर्फ जलते पाया है। कैसी छाया! तुम बातें कैसी कर रहे हो! बाहर के मार्गों पर मैंने लोगों को भटकते पाया, पसीने से तरबतर पाया, जलते पाया, लपटों में घिरा पाया, पीड़ा में पाया, संताप और चिंता में पाया। बाहर के मार्गों पर कैसी छाया! और बाहर के मार्गों पर कैसे सरोवर! किसी को कभी तृप्त होते देखा है ? किसी की प्यास बुझते देखी है? सिकंदर की नहीं बुझती जिसके पास सब है, सम्राटों की नहीं बुझती जिनके पास सब है। बुद्ध यह कह रहे हैं कि मेरी नहीं बुझी थी, मेरे पास सब था। मैं पागल थोड़े ही कि उस सबको छोड़कर चला आया! देखा कि नहीं बझती। बाहर के मार्गों पर सरोवर नहीं हैं। बाहर के मार्गों पर तो ऐसी ही स्थिति है कि जितना प्यास.को बुझाने की कोशिश करो, उतना और आग में घी पड़ता है, उतनी और प्यास भभकती है। सौंदर्य तो है आर्यमार्ग में। बुद्ध अंतर्मार्ग को आर्यमार्ग कहते हैं। आर्य का अर्थ होता है, श्रेष्ठ। जो श्रेष्ठ हैं, वे भीतर की तरफ जाते हैं; जो निकृष्ट हैं, वे बाहर की तरफ जाते हैं। आर्यमार्ग का अर्थ होता है, जिनके पास बुद्धिमत्ता है वे भीतर की तरफ जाते हैं, जो बुद्धिहीन हैं वे 143
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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