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________________ एस धम्मो सनंतनो धीरे-धीरे होश बढ़ेगा, धीरे-धीरे होश गहरा होगा। और जैसे-जैसे होश गहरा होता है, वैसे-वैसे तुम ज्ञान के करीब आने लगे। ज्ञान तुम्हारे भीतर पड़ा है। ज्ञान तुम साथ लेकर आए ही हो। तुम्हारी समृद्धि तुम्हारे साथ है, तुम्हारा साम्राज्य तुम्हारे साथ है। इसीलिए तो जीसस बार-बार कहते हैं, प्रभु का राज्य तेरे भीतर है। आखिरी प्रश्नः मन यदि स्वप्नवत है, तो फिर मन से जो भी किया जाए वह भी तो स्वप्नवत ही होगा न! तब क्या साधना भी स्वप्नवत ही .. है और संन्यास भी? ऐसा ही है। साधना भी स्वप्न है और संन्यास भी। मगर स्वप्न-स्वप्न में भेद है। एक कांटा लग जाता है पैर में तो दूसरे कांटे से हम पहले कांटे को निकालते हैं। दूसरा भी कांटा है, ध्यान रखना। मगर एक लग गया है कांटा तो दूसरे कांटे से निकालते हैं। दूसरा कांटा नहीं है, ऐसा मत सोच लेना, नहीं तो बड़ी भूल हो जाएगी। फिर जब पहला कांटा निकल गया तो क्या करते हो? दोनों कांटे फेंक देते हो। यह थोड़े ही है कि दूसरे कांटे को सम्हालकर रख लेते हो, कि इसको तिजोड़ी में बंद रखते हो, कि इसकी पूजा करते हो। संसार कांटा है। संन्यास भी कांटा है। एक कांटे से दूसरे कांटे को निकाल लेना है। फिर दोनों बेकार हो गए। परम अवस्था में संन्यास भी नहीं है। __ उस ब्राह्मण ने जिसने बुद्ध से पूछा कि आप देव हैं, गंधर्व हैं, मनुष्य हैं, वह एक बात भूल गया, उसे पूछना चाहिए था, आप संन्यासी हैं, गृहस्थ हैं? तो भी वह कहते कि न मैं संन्यासी हूं, न गृहस्थ हूं। वह कहते, मैं बुद्ध हूं। बुद्धत्व की घटना में कहां संसार और कहां संन्यास! संसार बीमारी है, तो संन्यास औषधि है। लेकिन जब बीमारी चली गयी तो तुम औषधि की बोतल भी तो फेंक आते न कचरेघर में! उसको सम्हालकर थोड़े ही रख लेते हो। या लायंस क्लब को दान कर आते हो! उसका करोगे क्या? व्यर्थ हो गयी। जहर से जहर को मिटाना पड़ता है। संन्यास भी उतना ही स्वप्न है, जितना संसार। इस छोटी सी कहानी को अपने हृदय में लो एक व्यक्ति ने स्वप्न में देखा कि वह चोरी के जुर्म में पकड़ लिया गया है—होगा कृष्णप्रिया जैसा, स्वीकार न करोगे तो सपना आएगा, सपने में फंसोगे; इससे बेहतर है, जागने में स्वीकार कर लेना चाहिए–एक व्यक्ति ने स्वप्न में देखा कि वह चोरी के जुर्म में पकड़ लिया गया है और जेल में बंद है। उसने बहुत 122
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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