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________________ जागरण ही ज्ञान गुलाब पर, उन्होंने खबर दी । इसीलिए द्वार - दरवाजे खुलवाए थे, प्रकाश तो मैं जानता था कुछ अर्थ न होगा, तू बड़ी साम्राज्ञी है, तेरे दरबार में बड़े कलाकार हैं। और जब तू इसको परीक्षा बनाकर आयी है, तो गुलाब इतना सुंदर बनाया गया है और इस ढंग से बनाया गया है कि मैं भी पहचान न सकूंगा। नहीं, यह मेरी बुद्धिमत्ता नहीं है, यह तो मधुमक्खियों की बुद्धिमत्ता है, जिसका मैंने उपयोग कर लिया। आदमी भर धोखे में आता है, इस जगत में और कोई धोखे में नहीं आता । कहते हैं, जब बुद्ध ज्ञान को उपलब्ध हुए, तो जिस वृक्ष के नीचे बैठे थे, उसके आसपास बेमौसम फूल खिल गए। जिस वृक्ष 'के नीचे बैठे थे, वह सूखा जा रहा था, उस पर हरे पत्ते निकल आए। अब तुम धम्मपद को रख दो जाकर उस वृक्ष के नीचे, वृक्ष धोखे में न आएगा। धम्मपद को रखने से उस वृक्ष में नए पत्ते न आएंगे। धम्मपद को ले जाकर रख दो किसी वृक्ष के नीचे, जिसमें फूल आने बंद हो गए हैं, तो फूल न आएंगे। तुम वृक्षों को धोखा न दे सकोगे, सिर्फ आदमी धोखा खाता है। आदमी धम्मपद के चरणों में सिर झुकाता है, धम्मपद की पूजा करता है, गीता की, कुरान की, बाइबिल की । किताबें बड़ी महत्वपूर्ण हो गयी हैं । कई कारण हैं। पहला तो यह कि किताब बड़ी सुलभ है और सस्ती है । और किताब के तुम मालिक हो जाते हो । किताब तुम्हारी मालिक नहीं हो पाती। तुम किताब में जो अर्थ निकालना चाहो, निकालो; जो व्याख्या करना चाहो, करो। अपने मतलब का जो हो, निकाल लो; अपने मतलब का जो न हो, छोड़ दो। किताब तुम्हें क्या बदलेगी, तुम किताब को बदल डालते हो 1 सदगुरु का अर्थ होता है, जिसे तुम न बदल सको । वही तुम्हें बदल सकेगा। जिसे तुम बदल दोगे, वह तुम्हें कैसे बदलेगा? इसलिए ध्यान रखना, उन साधु-महात्माओं से बचना जो तुम्हारे द्वारा संचालित होते हैं । तुम कहते हो, पानी छानकर पीओ और वे पानी छानकर पीते हैं। तुम कहते हो, रात चलो मत और वे नहीं चलते। और तुमसे डरते हैं। उन साधु-महात्माओं से सावधान रहना जो तुम्हारी मानकर चलते हैं, वे तुम्हें न बदल सकेंगे। अगर तुम्हें बदलना हो तो किसी ऐसे आदमी की तलाश करना जो तुम्हारी सुनता ही नहीं। जो अपनी गुनता, अपनी सुनता, अपने ढंग से जीता है। तो शायद तुम कभी सदगुरु के पास पहुंच सको। इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि सदगुरु मौलिक रूप से विद्रोही होता है, परंपरागत नहीं होता, हो नहीं सकता। परंपरागत तो वे ही महात्मा होते हैं जो तुमसे भी गए - बीते हैं। तुम्हारी मानकर चलते हैं। - मेरे पास कुछ जैन मुनियों ने खबर भेजी, हम मिलने आना चाहते हैं, लेकिन श्रावक नहीं आने देते। श्रावक नहीं आने देते ! तो यह तो हद का महात्मापन हुआ ! श्रावक कहते हैं कि वहां मत जाना, क्योंकि श्रावक डराते हैं कि अगर वहां गए, 103
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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