________________
मन की मृत्यु का नाम मौन
की धारा होती है। ठीक इससे उलटा भी होता है। बाहर विचार की धारा चलती रहे और भीतर मौन का गहन प्रभाव होता है।
तो बुद्ध ने कहा, और वह अंतर्दशा बोलने से भी भंग नहीं होती है।
बोलने से जो भंग हो जाए, वह भी कोई मौन है। वह तो कोई मौन न हुआ। वह तो केवल मौन का धोखा हुआ। वह तो केवल मौन का ऊपरी, औपचारिक आयोजन हुआ। . फिर कुछ इसलिए चुप रहते हैं कि जानते नहीं, बोलें भी तो क्या बोलें! न बोलने से कम से कम अज्ञान तो छिपा रहता है। और कुछ जानते हुए भी नहीं बोल पाते हैं, क्योंकि बोलने की दक्षता नहीं है। ___ गीत तो सबके भीतर उठते हैं, गा बहुत कम लोग पाते हैं क्योंकि गीत गाने की दक्षता! नाच तो सभी के भीतर उठता है, लेकिन नाच बहुत कम लोग पाते हैं क्योंकि नाचने की दक्षता! ___अक्सर तुम्हें ऐसा लगा होगा-किसी और का गीत सुनकर तुम्हें नहीं लगा है-अरे, ऐसा ही मैं भी गाना चाहता था। और किसी और की बात सुनकर तुम्हें नहीं लगा है बहुत बार कि मेरी बात छीन ली! ऐसा ही मैं कहना चाहता था।
सच तो यह है, जब भी तुम्हें किसी की बात हृदय के बहुत अनुकूल पड़ती है, तो इसीलिए पड़ती है-तुम भी उसे कहना चाहते थे वर्षों से, नहीं कह पाए, तुम दक्ष न थे; किसी और ने कह दी, तत्क्षण तुम्हारे भीतर उतर गयी। तुम्हारे भीतर तैयार ही थी, लेकिन स्पष्ट नहीं हो रही थी, अप्रगट थी, छिपी-छिपी थी, धुंधली-धुंधली थी, किसी ने साफ-साफ कह दी।
सदगुरु तुम्हें सत्य देता थोड़े ही है, जो सत्य तुम्हारे भीतर धुंधला-धुंधला है, उसके सत्य के साथ-साथ स्पष्ट होने लगता है। सदगुरु के सत्य के साथ-साथ तुम्हारे भीतर का सत्य तुम्हें स्पष्ट होने लगता है। सत्य दिया नहीं जाता, सत्य लिया नहीं जाता, सत्य कोई हस्तांतरण होने वाली संपदा नहीं है। मैं तुम्हें कुछ दे नहीं सकता, तुम जो बोलना चाहते हो, तुम जो कहना चाहते हो, तुम जो जानना चाहते हो, उसे मैं अपने ढंग से कह देता हूं, शायद तुम्हारे भीतर संगति बैठ जाए उससे, तार जुड़ जाएं और तुम भी आंदोलित हो उठो। - संगीतज्ञ कहते हैं, अगर एक शांत, शून्य कमरे में एक कोने में वीणा रखी हो और कोई कुशल वादक दूसरे कोने में बैठकर वीणा बजाए, तो वह जो खाली रखी वीणा है, उसके तार कंपने लगते हैं। उनसे भी धीमी-धीमी ध्वनि उठने लगती है। बस ऐसा ही होता है। __सदगुरु के पास शिष्य मौन बैठा होता है, शांत बैठा होता है, स्वीकार करने के भाव में, श्रद्धा में डूबा बैठा होता है, टकटकी लगाए। इधर गुरु की वीणा बजती, वहां शिष्य के भीतर के वर्षों-वर्षों, जन्मों-जन्मों से सूने पड़े तार हिलने लगते हैं।
91