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एस धम्मो सनंतनो
यह है ये गांठें, और गांठों के ऊपर गांठे-हमारे दुख की व्याकरण।
क्या पढ़ें दर्द की व्याकरण जिंदगी है कटा अवतरण रूप का, आयु का, सांस का आज होता न एकीकरण मोह किससे कहां तक चले बंध न पाते नयन से चरण सत्य की बात कैसे कहें आवरण ही यहां आवरण जो भटकते रहे उम्र भर आंकते हैं वही आचरण रेत है, शंख है, आदमी धुंध के बीच खोयी किरण क्या पढ़ें दर्द की व्याकरण
जिंदगी है कटा अवतरण यहां अगर तुम जिंदगी को गौर से देखो तो तुम दर्द का व्याकरण समझ जाओगे कि क्या है गांठें बनाना। और हम गांठे बनाने में बड़े कुशल हैं। हम बड़ी जल्दी गांठे बनाते हैं। हमारी एक ही कुशलता है कि हम गांठें निर्मित कर लेते हैं, जल्दी से निर्मित कर लेते हैं। और फिर तकलीफ पाते हैं, फिर पीड़ा पाते हैं। ऐसे धीरे-धीरे हमारे पूरे प्राण गांठों से भर जाते हैं। जगह-जगह पीड़ा होने लगती है, जगह-जगह दर्द होने लगता है।
धर्म का अर्थ है, धीरे-धीरे गांठों का विसर्जन; और एक ऐसी निग्रंथ दशा, जहां तुम हो अपने में मस्त, जहां तुम हो अपने में पर्याप्त। जहां अगर सारी दुनिया इसी क्षण विदा हो जाए तो भी तुम्हारी मस्ती में कणभर अंतर न पड़ेगा। तुम्हारी मस्ती ऐसी की ऐसी रहेगी। तो तुम्हारी मस्ती लोगों से मुक्त हो गयी, तो तुम्हारी मस्ती तुम्हारी अपनी है, तुम्हारी संपदा है, अब इसे कोई छीन नहीं सकता है। जो छीना जा सके, उसे संपदा मानना ही मत। वह विपदा है। जो छीनी न जा सके, वही संपत्ति है, शेष सब विपत्ति है।
दूसरा सूत्र, उसके पहले की कथा
एक श्रावक का बेटा मर गया। वह बहुत दुखी हुआ। ।
श्रावक कहते हैं सुनने वाले को, बुद्ध को सुनता था। अगर सुना होता तो दुखी होना नहीं था, तो कानों से ही सुना होगा, हृदय से नहीं सुना था। नाममात्र को श्रावक था, वस्तुतः श्रावक होता तो यह बात नहीं होनी थी।
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