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एस धम्मो सनंतनो पागल हुआ है। यह पट्टी तो इसलिए बांध रहे हैं कि स्कूल में कोई बच्चा वगैरह तुझे कोई दुखा न दे। उसने कहा, इसीलिए तो मैं कह रहा हूं, आप स्कूल के बच्चों को नहीं जानते। आप इस हाथ में बांधिए जिसमें चोट नहीं है, क्योंकि जिस हाथ में पट्टी है, वे दुखाएंगे ही। उनको अगर पता चल गया कि चोट है, तो आप स्कूल के बच्चों
को जानते ही नहीं! - यह दुनिया ऐसी है। यहां अगर लोगों को पता चल गया, कहां तुम्हारी गांठ है, लोग उसी-उसी पर चोट करेंगे। तो लोग अपनी गांठों को छिपाते हैं। छिपाना पड़ता है। अपनी गांठ की बात ही नहीं करते लोग। किसी को पता नहीं चलना चाहिए। नहीं तो ये दुष्ट चारों तरफ लोग हैं, ये मजा लेंगे। ये बार-बार तुम्हारी बटन दबाने लगेंगे, और तुम्हारी गांठ दुखेगी, इनको बहुत आनंद आएगा। सताने में लोगों का
मेरे गांव में एक आदमी को लोग सीताराम कहकर चिढ़ाते थे! बस सीताराम कोई कह दे कि वह एकदम बिगड़ जाएं, डंडा उठा लें, पत्थर मारने लगें। वह कृष्ण-भक्त थे। और सीताराम के बिलकुल विरोधी थे। ___ यह जब लोगों को पता चल गया तो उनका गांव में निकलना ही मुश्किल! उनको मैं देखू कि वह अपने घर से निकलकर नदी तक स्नान करने गए हैं, फासला मुश्किल से दो मिनिट का है, उसमें उनको कभी घंटा लग जाए। नदी में नहा रहे हैं
और बीच में कोई ने चिल्ला दिया कि सीताराम, कि वह बाहर निकल आएं, उनको नहाना-वहाना.फिर तो खतम हो गयी बात! ___ मैंने एक दिन उनको कहा कि ऐसे तो तुम बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे। तो उन्होंने कहा, क्या करूं, मुश्किल में तो मैं हूं ही! आपके पास कोई रास्ता है? मैंने कहा, ऐसा करो कि तुम खुद ही सीताराम कहने लगो। उन्होंने कहा, इससे क्या होगा? मैंने कहा, तुम सात दिन मेरा प्रयोग करके देखो। जो कोई दिखायी पड़े कहो, सीताराम! कोई सीताराम कहे तो तुम और जोर से कहो, सीताराम! और कहो, ठीक बेटा, और जोर से कहो सीताराम। उन्होंने कहा, इससे होगा क्या? मैंने कहा, तुम सात दिन करके देखो।
सात दिन में गांव सन्नाटा हो गया। कोई उनसे सीताराम न कहे। सार क्या रहा। गांठ ही हाथ के बाहर हो गयी। वह जो गांठ थी, वह यह थी कि वह सीताराम में चिढ़ते थे। सीताराम में उन पर चोट लगती थी। जब यह खुद ही आदमी सीताराम कहने लगा तो अब क्या सार है! __वह मेरे पास आए और बोले कि बात गजब की है, काम कर गयी। अब तो मैं निकलता हूं तलाश में। मुझे भी मजा आने लगा है कि कोई कह दे सीताराम, मगर कोई कहता ही नहीं। जो लोग पहले चिढ़ाते थे वे ऐसा आंख बचाकर निकल जाते हैं, गली-कूचे में से निकल जाते हैं। नदी पर मैं नहाता रहता हूं, कोई नहीं कहता