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एस धम्मो सनंतनो
शाम है दर्द है हम हैं और तनहाई
जिंदगी टूटा हुआ क्रम है और तनहाई कहने को लोग हैं खुशियां हैं तमन्नाएं हैं न कोई दोस्त न हमदम है और तनहाई कोई आता है आ रहा है आएगा शायद खूबसूरत ये हमें भ्रम है और तनहाई उनके मिलते ही बिछुड़ने की कोई बात करो रात है घिरता हुआ तम है और तनहाई क्या करें किसको पुकारें और कहां जाएं हम
आंख हर एक यहां नम है और तनहाई आदमी अकेला है। और इस अकेलेपन के कारण दो यात्राओं पर आदमी जा सकता है। एक यात्रा है समाज की और एक यात्रा है संन्यास की। दोनों पैदा होते हैं अकेलेपन से, तनहाई से। अकेला आदमी या तो अपने को भुलाने के लिए दूसरों का साथ खोजे, भीड़ खोजे, संबंध खोजे, संग खोजे, नाता-रिश्ता खोजे-पत्नी में, पति में, बच्चों में, मित्रों में, परिवार में अपने को डुबा ले, भूल जाए कि मैं अकेला हूं, तो समाज की यात्रा शुरू हुई।
लेकिन ऐसे कोई कभी भूल नहीं पाता। बार-बार तनहाई उभर-उभरकर निकलती रहती है। जगह-जगह से छेद हो जाते हैं और जगह-जगह से दिखायी पड़ता है वह सत्य, जिसे हमने झुठलाने की कोशिश की है। लाख पत्नी हो, पति हो, मित्र हों, प्रियजन हों, फिर भी तुम होते तो अकेले ही हो। अकेलेपन को इतने जल्दी मिटा देने
का कोई उपाय नहीं। इतने सस्ते में अकेलापन जाता होता तो आदमी सुखी हो गया होता। नहीं जाता है। अक्सर तो ऐसा होता है कि भीड़ तुम्हें और भी अकेला कर जाती है। भीड़ और अकेलेपन को उभार-उभारकर बताने लगती है। जितना तुम भुलाने की चेष्टा करते हो, उतनी और याद आती है।
तो एक तो समाज, संग-साथ, इनके द्वारा आदमी अपने को भुलाने की कोशिश करता है। और दूसरा, संन्यास। संन्यास का अर्थ है, अकेलेपन को किसी के संग-साथ में भुलाना नहीं है, बल्कि अकेलेपन को जानना है कि क्या है। अकेलेपन में उतरना है, सीढ़ियां लगानी हैं। पहचानना है अपने को कि मैं कौन हूं जो अकेला है। और पहचानना है कि यह क्या है जो अकेलापन है। ___ जो आदमी इस अकेलेपन को पहचानने चलता है, एक दिन पाता है, यह अकेलापन कैवल्य है। यह अकेला होना हमारा स्वभाव है। और इस अकेले होने में कोई पीड़ा नहीं है, कोई दुख नहीं है। यह अकेला होना आनंद है। यह अकेला होना हमारी स्वतंत्रता है, मुक्ति है, मोक्ष है।