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________________ एस धम्मो सनंतनो तो लकड़ियां काटने से अल्सर कैसे खो गए। ऊर्जा तो वही है । अगर भीतर घुमड़ती रहे तो अल्सर बन सकती है, बाहर निकल जाए तो लकड़ी काट सकती है। तुम्हारे पास ऊर्जा एक ही है। इससे ही तुम गाली देते हो, इसी से तुम प्रभु स्मरण करते हो। यही ऊर्जा धन की तलाश में जाती है, यही ऊर्जा ध्यान की तलाश करती है । यही ऊर्जा संसार बनती, यही ऊर्जा निर्वाण बन जाती। इसलिए बुद्ध ने कहा, इतनी शक्ति अगर इसने अपनी खोज में लगायी होती तो अब तक भगवत्ता को उपलब्ध हो गया होता, भगवान हो गया होता। इससे कुछ सीख लो, अपने पर दया करो। बुद्ध सदा कहते थे, अपने पर दया करो। वह नहीं कहते थे, दूसरों पर दया करो। दूसरों पर तुम कैसे दया करोगे, जब तक अपने पर ही दया नहीं की ! जो आदमी अपने पर ही नाराज है, वह पूरे संसार से नाराज रहेगा । और जो आदमी अपने पर दया करता है, वह किसी पर नाराज न रहेगा। जिसने अपने को प्रेम करना सीख लिया, वह सारे संसार को प्रेम करना सीख लेगा। मैं भी तुमसे यही कहता हूं कि अपने को प्रेम करो, अपने पर दया करो। तुमने अपनी खूब हानि की है। और अक्सर तुम सोचते हो, दूसरों की हानि कर रहे हो, तभी तुम अपनी हानि कर रहे होते हो। तुमने जो-जो पत्थर दूसरों पर फेंके हैं, वे तुम्हारी छाती में ही चुभ गए हैं। और तुमने जो तीर दूसरों को मिटाने के लिए चलाए हैं, उन्हीं का विष तुम्हें खाए जा रहा है। तुमने जो गड्ढे दूसरों के लिए खोदे हैं, उन्हीं में तुम गिर गए हो। इस जगत में तुम जो गड्ढे दूसरों के लिए खोदते हो, वे अंततः तुम्हारी ही कब्र सिद्ध होते हैं। अपने पर दया करो और अपने अकल्याण से बचो | मनुष्य अपना ही शत्रु और अपना ही मित्र है। अगर तुम अपनी ऊर्जा का सम्यक उपयोग कर लो तो मित्र, असम्यक उपयोग करो तो शत्रु । उस युवक ने बड़े क्रोध से कहा, कोई दान न दे तो हम कैसा भाव रखें ? उसको लगा होगा, यह क्या फिजूल बात कर रहे हैं! कोई दान न दे तो हम कैसा भाव रखें ? जैसे कि दान देना दूसरों का कर्तव्य ही है । देना ही चाहिए। । तुमने देखा, कभी भिखारी दरवाजे पर आकर खड़ा हो जाता है, अगर न दो तो वह तुम्हें पापी समझता है। न दो, तो वह इस तरह जाता है जैसे तुम जैसा जघन्य अपराधी उसने कभी नहीं देखा। जैसे कि यह तो बड़ी कृपा थी उसकी कि उसने तुम्हारे द्वार पर भिक्षा मांगी। तुम पर बड़ा अनुग्रह किया था उसने। धीरे-धीरे लोग भिक्षा मांगने तक को, तुम पर अनुग्रह कर रहे हैं, ऐसी धारणा बना लेते हैं । कोई दान न दे तो हम कैसा भाव रखें ? कोई दुतकारे तो हम कैसा भाव रखें? और कोई हमें दान न दे और दूसरों को दे तो हम कैसा भाव रखें ? उस दिन उसने भगवान को भगवान कहकर भी संबोधित नहीं किया । मनुष्य की श्रद्धाएं भी कितनी 342
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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