SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो तो बुद्ध ने ठीक कहा कि 'भूख सबसे बड़ा रोग है। संस्कार सबसे बड़े दुख हैं। ऐसा यथार्थ जो जानता है वही जानता है कि निर्वाण सबसे बड़ा सुख है।' उन्होंने उस भूखे आदमी को भोजन कराया। लेकिन यह बात एक ही दफा घटी है, यह भी खयाल रखने जैसी बात है। ऐसा बुद्ध ने बार-बार नहीं किया। क्योंकि यह भूखा आदमी सिर्फ भूखा आदमी ही नहीं था, इस भूखे आदमी के भीतर बड़ी मुमुक्षा थी। यह बड़ी प्रगाढ़ता से आकांक्षा कर रहा था परमात्मा के खोज की, सत्य के खोज की—या जो भी नाम दो। यह सिर्फ भूखा होता तो बुद्ध को इसमें कोई विशेष उत्सुकता नहीं थी। उत्सुकता इसलिए थी कि इसके भीतर एक और बड़ी भूख थी जो इस छोटी भूख के कारण दबी पड़ी थी। इसके भीतर एक बड़ी भूख का अंकुर फूट रहा था, जो नहीं फूट पा रहा था, क्योंकि यह छोटी भूख इसे खाए जा रही थी। यह सुबह ही से बुद्ध का ही स्मरण करता घूम रहा था। खोज रहा था बैल को, स्मरण कर रहा था बुद्ध का। इतनी जल्दी थी इसे कि घर से बिना खाए-पीए निकल पड़ा था कि जल्दी-जल्दी बैल को खोजकर बुद्ध के पास पहुंच जाऊं। फिर इतनी जल्दी थी, इतनी आतुरता थी कि बैल मिल गया तो उसे किसी तरह बांध-बूंधकर खेत-खलिहान में, भागा! घर नहीं गया कि दो रोटी खा ले। भागा! कि पहले बुद्ध को सुन लूं। इसकी धर्म की प्यास निश्चित प्रगाढ़ रही होगी। तुम तो छोटे-छोटे कारणों से चूक जाओ। कभी ध्यान नहीं करते, क्योंकि कहते हो कि आज जरा शरीर स्वस्थ नहीं है। कभी कहते हो, आज ध्यान कैसे करें, घर में मेहमान आए हैं। कभी कहते हो, आज ध्यान कैसे करें, आज जरा दफ्तर में थक गए। आज कैसे ध्यान करें, आज कैसे ध्यान करें, तुम बहाने खोजते रहते हो। . इस आदमी ने बहाना नहीं खोजा। इसके पास बहाने काफी थे—बैल खो गया, अब कहां बुद्ध के पास जाएं! बैल खोजें कि बुद्ध को खोजें! बात छोड़ देता। तुम होते तो बात ही छोड़ दिए होते। फिर बैल भी मिल गया होता तो कहता, अब दोपहरीभर थका-मांदा हूं, घर थोड़ा भोजन करूं, विश्राम करूं, फिर देख लेंगे, ऐसी जल्दी क्या है! और बुद्ध कोई भागे थोड़े ही जाते हैं! __इसकी बड़ी प्रगाढ़ आकांक्षा रही होगी कि भूखा ही आ गया। इसका कुम्हलाया हुआ चेहरा, इसका भूखा पेट, यह थका-मांदा जब बुद्ध के चरणों में झुका होगा तो उन्होंने देखा होगा-इसका शरीर ही भूखा नहीं है, इसकी आत्मा भी भूखी है। यह सच में ही...तो उन्होंने बड़ी जिद्द की कि तू पहले भोजन कर। उन्होंने खुद भोजन बुलाया। अब बुद्ध के पास कहां भोजन! किसी को दौड़ाया कि जल्दी गांव से भोजन लेकर आओ। भिक्षुओं में चर्चा की बात उठ ही गयी होगी कि यह कौन विशिष्ट आदमी आ गया, एक गंवार सा किसान है! बुद्ध इसमें क्या देख रहे हैं? ___जो कभी-कभी तुम्हें नहीं दिखायी पड़ता, वह बुद्धों को दिखायी पड़ता है। क्योंकि तुम्हें तो हीरे तभी दिखायी पड़ते हैं, जब जौहरी उन्हें साफ-सुथरा करके, 20
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy