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________________ एस धम्मो सनंतनो तो कोई ब्रह्मचर्य न हुआ । और जब वीर्य ऊर्जा नहीं बनती, तो जीवन से सारा तेज खो जाता है। ये भयभीत लोग हैं। इनको संन्यस्त कहो ही मत । इसलिए मैं यह बात तुम्हें साफ करना चाहता हूं कि अगर किसी को आनंद आता हो छोड़ देने में, उदासी न आती हो, तो ठीक है, जरूर छोड़े। हम कुछ ऐसे लोग चाहेंगे दुनिया में जो सब छोड़कर जीएं। वे प्यारे लोग हैं। उनकी जगह होनी चाहिए। उनका सम्मान होना चाहिए। उनकी फिकर होनी चाहिए । लेकिन कोई आदमी अगर सिर्फ इसलिए छोड़ देता हो कि बिना छोड़े भगवान मिलने वाला नहीं, तो गड़बड़ खड़ी हो गयी। तो यह आदमी उदास होगा, क्षीण होगा, दीन होगा। इसकी प्रतिभा मरेगी। इस पर धूल जम जाएगी। एक जैन मुनि को मेरे पास लाया गया। उनके भक्त कहें कि बड़े तपस्वी हैं, आप तो देखते ही से प्रसन्न हो जाएंगे, स्वर्ण जैसी काया । मैंने कहा कि जरूर लाओ। स्वर्ण-कायाओं में मेरी उत्सुकता है। तुम जरूर ले जाओ। वे लाए। मैंने कहा, इसको तुम स्वर्ण काया कहते हो ? इसको पीतल की काया भी कहना ठीक नहीं। वह सिर्फ बिचारे रुग्ण हो गए हैं, पीले पड़ गए हैं। पीले पत्ते को स्वर्ण काया कहते हो ! इनको तुम मारे डाल रहे हो, स्वर्ण-काया कह कहकर इनकी जान ले रहे हो। क्योंकि जब लोग स्वर्ण-काया कहते हों, तो यह और उसको स्वर्ण काया बनाए जा रहे हैं। इनको तुम खाने नहीं देते, सोने नहीं देते, बैठने नहीं देते, उठने नहीं देते। तुम्हारा सारा सम्मान दुखवादी का सम्मान है। - तुम खयाल रखना, जब तुम किसी को सम्मान देते हो तो सोचकर देना । कहीं तुम्हारे सम्मान के कारण उसके जीवन में कुछ गलत तो नहीं हो रहा है? अब अगर तुम उपवास करने वाले को सम्मान देते हो, तो सोचकर देना । कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हारे सम्मान पाने के लिए उपवास करता चला जाए। तो तुमने उस आदमी को भूखा मारा। उसका जिम्मा तुम्हारे ऊपर है। तुम हिंसक हो। तुम अगर किसी आदमी को इसलिए सम्मान देते हो कि यह खड़ा ही रहता है ... । एक सज्जन, एक गांव में मैं गया, उनका नाम खड़ेश्वरी बाबा ! वह खड़े ही हैं दस साल से । बैसाखियां लगा रखी हैं, हाथ ऊपर बांध रखे हैं उनके पैर तो हाथी-पांव हो गए, सूज गए हैं— और लोग भीड़ लगाए हैं, रुपए चढ़ा रहे हैं, फूल चढ़ा रहे हैं। वह आदमी बिलकुल ऐसा, ऐसा लटका है, जैसे कि तुम कभी-कभी कसाई - घर में बकरे इत्यादि को लटके हुए देखो। हालत उसकी खराब है। सारा शरीर रुग्ण हो गया है। क्योंकि दस साल से बैठा नहीं, लेटा नहीं, सोया नहीं। बस ऐसा रात में हाथ को रस्सी पकड़े हुए और शिष्य भी सहारा दिए रहते हैं, वह रात किसी तरह झपकी ले लेते हैं। पैर सूज गए हैं- अब तो वह बैठ भी नहीं सकते, अब तो पैर मुड़ भी नहीं सकते। और लोग पूजा किए जा रहे हैं। और उन पूजा करने वालों को किसी को भी यह खयाल नहीं है कि तुम सब 312
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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