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________________ एस धम्मो सनंतनो मुझे दे सकते हो और परीक्षा ले सकते हो! लेकिन महावीर को तकलीफ होगी, बुद्ध को तकलीफ होगी, शंकर को तकलीफ होगी। तकलीफ होती हो तो छोड़ ही देना चाहिए। तकलीफ होती हो तो धन धन न रहा, मौत हो गयी। ___दो तरह के लोग हैं दुनिया में। एक, जिन्हें वस्तुओं के कारण अड़चन होती है। तो उन्हें छोड़ ही देना चाहिए। एक, जिन्हें वस्तुओं के कारण कोई अड़चन नहीं होती। जो वस्तुओं का सरलता से उपयोग कर सकते हैं और जिससे उन्हें कोई अड़चन नहीं आती। उन्हें मजे से उपयोग करना चाहिए। हिंदू, यहूदी, ईसाई, इस्लाम अगृही संन्यासी के पक्ष में नहीं हैं, गृही संन्यासी के पक्ष में हैं। जैन, बौद्ध और शंकर को मानने वाले हिंदू अगृही संन्यासी के पक्ष में हैं। मैं दोनों के पक्ष में हूं। किसी के विरोध में नहीं हूं। मैं मानता हूं, जो तुम्हें उचित लगता हो, उस तरफ से चल पड़ना। जिसमें तुम्हारा तालमेल बैठता हो, तुम्हारा सरगम जुड़ जाता हो, वही कर लेना। लेकिन यह प्रश्न ठीक नहीं है पूछना कि 'क्या कारण है कि विश्व की सभी संन्यास-परंपराओं में भिक्षावृत्ति और अगृही होने को सनातन रूप से महत्व दिया है?' ___ नहीं। सनातन रूप से तो दो परंपराएं हैं, यहूदी और हिंदू। ये बड़ी प्राचीन परंपराएं हैं। इन दोनों ने ही अगृही को कोई मूल्य नहीं दिया है। इन्होंने गृही संन्यासी को मूल्य दिया है। और मेरी दृष्टि यह है कि दुनिया में बहुत लोग अगृही नहीं हो सकते। व्यवस्थागत रूप से भी नहीं हो सकते। क्योंकि अगर बहुत लोग अगृही हो जाएं, तो अगृही को निर्भर तो गृही पर होना पड़ता है। इसलिए अगर जैनों की बहुत संख्या नहीं बढ़ी तो कोई आश्चर्य नहीं है। बढ़ नहीं सकती। आखिर जैनों की संख्या ज्यादा कैसे बढ़ सकती है? अगर समझो कि हिंदुस्तान में बीस करोड़ जैन-मुनि हो जाएं, तो क्या करोगे? तब एक ही उपाय रहेगा कि मुनियों को मारो। जैसे अभी बर्थ-कंट्रोल के लिए फिक्र करनी पड़ती है, नसबंदी करते हो, उनकी गलाबंदी करो। फिर उनके गले में फांसी लगाओ। क्योंकि बीस करोड़ अगर चालीस करोड़ के मुल्क में भिक्षावृत्ति करने लगें, तो भिक्षा देगा कौन? - ऐसा हो रहा है। थाइलैंड में चार करोड़ आबादी है, पचास लाख बौद्ध भिक्षु हैं। चार करोड़ की आबादी में पचास लाख भिक्षु ! हर आठ आदमी में एक आदमी भिक्षु। सरकार को नियम बनाना पड़ रहा है कि अब भिक्षुओं को काम करना पड़ेगा। काम करना ही पड़ेगा उनको। करना ही चाहिए। नहीं तो यह एक आदमी महंगा पड़ रहा है। और यह संख्या रोज बढ़ती जाती है। दुनिया में व्यवस्थागत रूप से भी अगृही संन्यासी योग्य नहीं है। कुछ लोग अगृही हो जाएं, ठीक है। उनको हम चला सकते हैं। जैसे कुछ लोग कवि हो जाते हैं, ठीक है। ऐसे कुछ लोग संन्यासी हो जाते हैं, ठीक है। इनसे समाज में सौरभ बढ़ता है। हां, कभी एकाध महावीर नग्न खड़े हो जाते हैं, बिलकुल ठीक है। इससे समाज 310
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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