SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो एक संस्कृत महाविद्यालय में एक प्रतियोगिता थी। तो मैं गया वहां भाग लेने। संस्कृत महाविद्यालय था, तो स्वभावतः संस्कृत महाविद्यालय के विद्यार्थी अंग्रेजी तो ठीक से जानते नहीं, पढ़ाई भी नहीं जाती थी उन्हें; थोड़ा-बहुत, ऐसा एक औपचारिक विषय की तरह पढ़ते थे। और यह भी खयाल रखना कि संस्कृत पढ़ने वाला विद्यार्थी जब किसी को प्रभावित करना चाहे तो वह अंग्रेजी का उपयोग करेगा। ___ तो संस्कृत कालेज का जो विद्यार्थी भाग ले रहा था प्रतियोगिता में, तीन-चार शब्द तो उसने हिंदी में बोले और इसके बाद उसने बट्रेंड रसल का एक उद्धरण अंग्रेजी में उद्धृत किया। वह प्रभावित करने के लिए सोचा होगा कि इससे प्रभाव पड़ेगा, कि हम संस्कृत के विद्यार्थी कोई गांव के गंवार नहीं हैं। हम भी अंग्रेजी जानते हैं और बर्टेड रसल को भी जानते हैं। उसी में वह झंझट में पड़ गया। दो-तीन शब्द तो बोला, चौथे पर अटक गया। : ___ मैं उसके पास ही बैठा था, उसकी दुर्दशा देखकर-वह इतनी मुश्किल में पड़ गया! अब उसने रटा होगा बिलकुल क्रम से। रटने की एक खराबी यह होती है कि उसमें क्रम नहीं बदल सकते, क्योंकि एक शब्द के बाद दूसरा शब्द, जैसा रेलगाड़ी में डिब्बे के बाद डिब्बा आता है, अब वह आए ही नहीं। एक अटक गया तो पूरी अटक गयी, तो मैंने तो उसको सहायता देने के लिए धीरे से कहा कि तू फिर से शुरू कर, शायद आ जाए। वह भी हद्द नासमझ था, उसने फिर से शुरू कर दिया, उसने फिर कहा, भाइयो एवं बहनो! तो लोग बहुत चौंके कि यह मामला-और फिर वही शब्द दोहराए, फिर वही बड रसल का उद्धरण, और वह फिर वहीं अटक गया। अब तो वह घबड़ा गया। - अब तो मुझे भी आनंद आया। मैंने कहा, फिर से! अटका हुआ आदमी, मुश्किल में पड़ा क्या करे? कुछ सूझे भी नहीं, आगे कोई गति भी नहीं, उसने फिर शुरू कर दिया कि भाइयो एवं बहनो! तब तो सारा विद्यार्थियों का समूह ताली पीटने लगा, लोग नाचने लगे कि हद्द हो गयी! वह वहां से आगे नहीं बढ़ा। उसके दस मिनिट-वह भाइयो एवं बहनो, तीन-चार शब्द, फिर बर्दैड रसल ने क्या कहा उसके तीन-चार शब्द, और वहीं आकर बस फुलस्टाप। वहां आकर एकदम गाड़ी उसकी रुक जाए। उनका पूरा व्याख्यान वही रहा। लालूदाई की कुछ वैसी हालत हुई होगी। संबोधन निकला तीन बार, उपासको!...उपासको!...उपासको!...और फिर अटक गए। चौथी बार तो संबोधन भी नहीं निकला। पसीना-पसीना हो गए। सब सूझ-बूझ खो गयी। याद किया, कुछ याद न आया। हाथ-पैर कंपने लगे और घिग्घी बंध गयी। तब तो गांव वाले असलियत पहचान गए। ___ यह भी खूब बोध हुआ, समाधि हुई! और यह धर्मोपदेश करने चले थे लालूदाई! और सारिपुत्र और मौदगल्लायन को कहते थे, क्या रखा है इनमें। और 280
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy