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________________ सत्य सहज आविर्भाव है कांपने लगे और घिग्घी बंध गयी। तब तो गांव वाले असलियत पहचान गए। लालूदाई मंच छोड़कर भागे। गांव वाले यह कहते हुए कि यह सारिपुत्र और मौदगल्लायन की प्रशंसा को सुन नहीं सकता और भगवान तक की आलोचना करने में पीछे नहीं रहता है और अपने से कुछ कह नहीं रहा है, उसका पीछा किए। लालूदाई भागते में मल-मूत्र के एक गड्ढे में गिर पड़े और गंदगी से लिपट गए। भगवान के पास खबर पहुंची। भगवान ने कहा, भिक्षुओ, अभी ही नहीं, यह लालूदाई जन्मों-जन्मों से ऐसी ही गंदगी में गिरता रहा है। भिक्षुओ, अहंकार गंदगी है, मल है। भिक्षुओ, अल्पज्ञान घातक है, शब्द-ज्ञान घातक है, शास्त्र-ज्ञान घातक है। इस लालूदाई ने थोड़े से शब्द सीख रखे हैं। अनुभव के बिना शब्द मुक्ति नहीं लाते, बंधन लाते हैं। इस लालूदाई ने थोड़ा सा धर्म सीख रखा है। लेकिन उसका भी ठीक-ठीक स्वाध्याय नहीं किया है। उसे भी पचाया नहीं है, नहीं तो आज ऐसी दुर्गति न होती। भिक्षुओ, इससे सीख लो। आलोचना सरल, आत्मज्ञान कठिन है। विध्वंस सरल, सृजन कठिन है। और आत्मसृजन तो और भी कठिन है। अहंकार प्रतिस्पर्धा जगाता है, प्रतिस्पर्धा से ईर्ष्या पैदा होती, ईर्ष्या से द्वेष और शत्रुता निर्मित होती। और फिर अंतर्बोध जगे कैसे? दूसरे का विचार ही न करो, समय थोड़ा है, स्वयं को जगा लो, बना लो, अन्यथा मल-मूत्र के गड्डों में बार-बार गिरोगे। भिक्षुओ, तुम्हीं कहो, बार-बार गर्भ में गिरना मल-मूत्र के गड्ढे में गिरना नहीं तो और क्या है! और तब भगवान ने ये गाथाएं कहीं असज्झायमला मंता अनुट्ठानमला घरा। मलं वण्णस्स कोसज्जं पमादो रक्खतो मलं ।। . 'स्वाध्याय न करना मंत्रों का मैल है, झाड़-बुहार न करना घर का मैल है। आलस्य सौंदर्य का मैल है, प्रमाद पहरेदारों का मैल है।' ततो मला मलंतरं अविज्जा परमं मलं । एतं मलं पहत्वान निम्मला होथ भिक्खवे।। 'इन सब मैलों से भी बढ़कर अविद्या परम मैल है। भिक्षुओ, इस मैल को छोड़कर निर्मल बनो।' सुजीवं अहिरिकेन काकसूरेन धंसिना । पक्खन्दिना पगब्भेन संकिलिटेन जीवितं।। 263
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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