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एस धम्मो सनंतनो
शांत तोमार छंद चरण पद में मम चित्त निष्पंदित करो, हे! नंदित करो नंदित करो नंदित करो, हे! अंतर मम विकसित करो, अंतरतर हे!'
ऐसा सोचते-सोचते, विचारते-विचारते, गुनगुनाते-गुनगुनाते तुम नंदित हो उठोगे। तुम आनंदित हो उठोगे। तुम्हारे भीतर वीणा बजने लगेगी। वीणा तो है ही भीतर, तुम ऐसा गुनगुनाओगे तो वीणा भी तुम्हारे साथ गुनगुनाने लगेगी। तार तो मौजूद हैं, स्पंदित करना है।
प्रार्थना प्रार्थी को बदलती है, परमात्मा को नहीं। प्रार्थना प्रार्थी को एक दिन परमात्मा बना देती है। और तो कोई परमात्मा है भी नहीं। इसलिए प्रार्थना को तुम यह मत सोच लेना कि हमने प्रार्थना कर दी और बात समाप्त हो गयी, अब तू जान! ऐसा उत्तरदायित्व नहीं छोड़ देना है परमात्मा पर। उससे तो आलस्य पैदा होता है; और जीवन रूपांतरित तो होता नहीं, और-और गड्ढों में गिर जाता है। जो प्रार्थना करो, उस प्रार्थना पर अपने जीवन को रूपांतरित करने की दिशा में भी प्रयास करना। प्रार्थना प्रयास बने तो ही गवाही तुम देते हो कि तुमने सच में ऐसा मांगा।
तुमने अगर सच में मांगा है'अंतर मम विकसित करो, अंतरतर हे! निर्मल करो उज्ज्वल करो सुंदर करो, हे!'
-तो फिर जो-जो कुरूप हो, उसे छोड़ते जाना। क्योंकि परमात्मा से जो मांगा है, वह कम से कम तुम तो अपने को दो, परमात्मा जब देगा तब देगा। तो जो-जो कुरूप हो, छोड़ते जाना। जो-जो उज्ज्वल न हो, छोड़ते जाना। जो-जो उज्ज्वल हो, उसे अंगीकार करना। जो-जो निर्मल हो, उसके सामने अपने को गतिमान करना।
'जाग्रत करो उद्धत करो निर्भय करो, हे!' तो अपने को जगाना। प्रार्थना करने पर प्रार्थना समाप्त नहीं होती, प्रार्थना तुमने
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