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उठने में ही मनुष्यता
शुरुआत
मगर पति की तकलीफ भी समझना। पति को इस बात से अड़चन होती है कि उनकी पत्नी किसी के चरणों में झुके। इससे पतिभाव को चोट पहुंचती है। यह बात ही उनको अखरती है कि उनकी पत्नी और किसी के चरणों में झुके ! उनकी पत्नी और किसी और के सामने झुके ! तो पति तो पत्नियों को समझाते रहे हैं कि हम परमेश्वर हैं। अब और इसके आगे तो कहीं जाने को है नहीं, पति परमात्मा है। आगे खतम हो गयी बात। पत्नियों ने कभी सुना नहीं, यह दूसरी बात है ! पति लेकिन यह समझाते रहे हैं, यह तो सच ही है ।
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उसे तो कठिनाई ही होने लगी होगी। ये कहां के लोग आ गए हैं? और ये लोग उसे बड़े अजीब से लगे होंगे। ये पीत वस्त्रधारी यहां क्या कर रहे हैं? इनकी यहां जरूरत क्या है? इन्हें किसने यहां बुला लिया है? लड़की के मां-बाप को बुद्ध से लगाव रहा होगा। लेकिन लड़के के मां-बाप को या लड़के को बुद्ध से कोई संबंध न रहा होगा। यह अपरिचित सी भीड़, ये अजीब से लोग! अगर थोड़े बहुत उसे समझ में भी आए होंगे कि मौजूद हैं, कहीं धुंधले में खड़े दिखायी भी पड़े होंगे, तो सिर्फ बेचैनी का कारण हुए होंगे। और पत्नी को झुकते देखकर उसकी अड़चन और बढ़ गयी होगी।
वह तो वहां था ही नहीं। वह तो भविष्य में था । उसके भीतर तो सुहागरात चल रही थी। वह तो एक अंधे की भांति था । वह तो झपटकर अपनी पत्नी को पकड़ लेना चाहता था। उसे कुछ और सूझ नहीं रहा था।
भगवान ने उस पर करुणा की ।
जो इतनी अग्नि में जल रहा हो, उस पर करुणा करनी ही पड़ेगी। उस पर दया खायी। उसका दुख समझा होगा । उसका पागलपन देखा होगा ।
उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वह वधू को देखने में अनायास असमर्थ हो गया । कथा कुछ कहती नहीं कि उन्होंने क्या किया। कुछ ऐसा किया। एक दूसरी कहानी से तुम्हें समझाऊं कि क्या किया होगा ।
एक सूफी फकीर के पास एक युवक आया, चरणों में सिर रखा और कहा कि मैंने निश्चय कर लिया है, मैंने पक्का विचार कर लिया है कि आपके चरणों में समर्पण करूंगा। फकीर ने कहा, तूने कहावत सुनी है कि इसके पहले शिष्य गुरु को चुने, गुरु शिष्य को चुन लेता है? युवक ने कहा, सुनी तो है, लेकिन मुझ पर लागू नहीं होती। मैंने ही निश्चय किया है कि आपके चरणों में सिर रखूंगा। फकीर ने कहा, तूने दूसरी कहावत सुनी है कि भगवान जिसको बुलाता है वही भगवान की तरफ जाता है? उस युवक ने कहा, छोड़ो ये कहावतें, सुनीं, न सुनीं, इससे कोई मतलब नहीं है, लेकिन अपने संबंध में मैं जानता हूं कि मैंने महीनों विचार करने के बाद यह तय किया है कि समर्पण करूंगा।
उस फकीर ने कहा, तू मेरे साथ आ । झोपड़ी के बाहर उसे ले गया, पास ही
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