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________________ एस धम्मो सनंतनो एक स्वर्णकार मरणशय्या पर था। स्वभावतः मृत्यु से बहुत भयभीत। क्योंकि मृत्यु के लिए कोई तैयारी तो की नहीं थी। कोई भी करता नहीं। जीवन ऐसे ही बीत जाता है, और आखिरी घड़ी जब करीब आती है तब बेचैनी होती है। उस दूर की यात्रा के लिए कुछ आयोजन तो किया नहीं था। बहुत घबड़ाने लगा। उसके बेटों ने अपने पिता के जीवन के लिए भिक्षुसंघ के साथ भगवान को निमंत्रित करके दान दिया। भोजनोपरांत पुत्रों ने कहा, भंते, इस भोजन को हम लोगों ने पिता के जीवन के लिए दिया है, आप उन्हें आशीष दें। आशीष दें कि उनकी आयु लंबी हो। ____ मरता हुआ आदमी, मरणशय्या पर पड़ा आदमी अभी भी आकांक्षा जीवन की ही करता है। तो इसका अर्थ हुआ कि जीवन से कुछ सीखा नहीं। इसका अर्थ हुआ कि जीवन की व्यर्थता दिखायी नहीं पड़ी। इसका अर्थ हुआ कि जीवन जीआ ही नहीं। अन्यथा व्यर्थता दिखायी पड़ ही जाती। बुद्धपुरुषों के पास जाकर भी लोग व्यर्थ की ही मांग करते हैं। आशीष भी मांगते हैं तो असार के लिए मांगते हैं। उसके पुत्रों ने कहा, आशीष दें भगवान कि हमारे पिता की आयु लंबी हो। बुद्ध हंसे और उन्होंने मरणशय्या पर पड़े वृद्ध से कहा, उपासक, अब तू जीवन का मोह छोड़। जीवेषणा मूढ़ता है। अब तो कम से कम मूढ़ता छोड़। अब तो कम से कम होश सम्हाल। अब तो जाग। तू बूढ़ा हुआ, तेरा शरीर पीले पत्ते के समान पक गया है और परलोक की यात्रा के लिए तेरे पास कोई पुण्य-पाथेय नहीं है। मांगना हो तो उस संबंध में कछ मांग। जिस यात्रा के लिए तू चला है, उस यात्रा के लिए कलेवा भी तेरे पास नहीं है और यात्रा लंबी है। पुण्य-पाथेय तेरे पास नहीं। तेरी गठरी खाली है। यह जीवन तो गया, तू पीले पत्ते की भांति हो गया है, अब गिरा, तब गिरा, जरा सा हवा का झोंका पर्याप्त होगा और अभी भी तू वृक्ष से चिपटे रहना चाहता है। अब तैयारी कर वृक्ष से गिरने की। और यह यात्रा जिस पर तू निकलेगा मृत्यु के बाद, लंबी है। देह छूट जाएगी, देह से जो कमाया था वह भी छूट जाएगा। कुछ ऐसा कमाया है जो देह के पार, देह के बिना तेरे साथ जा सकता हो? उसे ही हम पुण्य कहते हैं। पुण्य का अर्थ है, कुछ ऐसी कमाई जो मौत न छीन सके। पुण्य का अर्थ है, कुछ ऐसी कमाई जो देह की नहीं है, देहातीत है। ध्यान की है, समाधि की है। कुछ ऐसी कमाई जो आत्मिक है, जो आत्मा के साथ चलेगी। उसको पुण्य-पाथेय कहते हैं। पाथेय का अर्थ होता है, यात्रा के लिए कलेवा। रास्ते में भूख लगेगी तो कुछ पाथेय होना चाहिए। तो बुद्ध ने कहा कि परलोक की यात्रा के लिए तेरे पास कोई पुण्य-पाथेय नहीं है और अब भी तू जीवन की आकांक्षा करता है। और अब भी तू मांग रहा है कि 196
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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